हैरतअंगेज़ मालूमात और इल्मी बारीकियां


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*_हैरतअंगेज़ मालूमात और इल्मी बारीकियां_*
*पोस्ट नम्बर: 1⃣*

*हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने मुर्दों को जिंदा करने का सवाल क्यों किया ?*
_इमाम राजी रहमतुल्लाह अलैही ने इसकी सत्रह वजूह(कारण) बयान फरमाई हैं लेकिन अल्लामा नुवी रहमतुल्लाह अलैही ने चार के मुताल्लिक बयान फ़रमाया की यह ज़ाहिर और वाज़ेह हैं और बाकी वज़ूह ग़ैर ज़रूरी हैं !_
*पहली वजह::-* आपको इल्म इस्तिदलाली हासिल था अब आप मुर्दों को ज़िंदा करने की कैफियत का मुशाहिदा करना चाहते थे ताकि इल्म ज़रूरी बदीही भी हासिल हो जाये ! इसलिए की इमाम अबू मंसूर रहमतुल्लाहि अलैही का मज़हब यह है कि इल्म इस्तिदलाली में कभी शकूक वाकेय होते हैं लेकिन इल्म ज़रूरी शकूक से पाक होता है जो इल्म मुशाहिदा से अयायन हासिल हो वह ज़रूरी होता है !
ख़्याल रहे कि ख़ुद नबी के लिए इल्म इस्तिदलाली या ज़रूरी में फ़र्क़ नही होता क्योंकि नबी का इल्म शक से पाक होता है अलबत्ता सवाल करने की वजह यह थी कि किसी को भी यह कहने का हक़ न हो कि तुमने तो मुर्दों को जिंदा होते देखा ही नही तुम्हारे इल्म पर कैसे यकीन किया जाए !!
*दूसरी वजह::-* आप यह जानना चाहते थे कि मेरा मर्तबा अल्लाहः के नज़दीक क्या है ? और मेरी दुआ कि क़बूलियत का क्या मक़ाम है इस सूरत में मतलब यह होगा क्या तुम्हें यकीन नही तुम्हारा मर्तबा मेरे नज़दीक अज़ीम है तुम मेरे पसंदीदा हो और तुम मेरे खलील हो !
*तीसरी वजह::-* आपको पहले भी शक नही था आपने सवाल इस लिए किया ताकि यकीन की तरफ़ तरक्की हो जाये क्योंकि इन दोनों में बहुत बड़ा फ़र्क़ है इसलिए कि ऐनुल यकीन मुशाहिदा के बाद हासिल होता है लेकिन इलमुल यक़ीन में मुशाहिदा की जरूरत नही !
*चौथी वजह::-* जब आपने मुश्रिकिन पर यह दलील क़ायम फरमाई मेरा रब वह है जो ज़िंदा करता है और मारता है ! फिर आपने अल्लाह तआला से अर्ज़ किया ए अल्लाह तू किस तरह मुर्दों को ज़िंदा करता है ? यानी उनको मेरे सामने ज़िंदा कर मैं देखूं ताकि मेरी दलील काफिरों पर ज़ाहिर हो जाए !!
*📚[तज़किरतुल अम्बिया, सफा 95, 96]*
_*👉🏻नोट::-* पोस्ट को खूब आम करें, बहुत अहम इल्म है साथ ही अगली पोस्ट पढें *"एतराज"*_
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*पोस्ट नम्बर: 2⃣*
*❓एक एतराज का जवाब*
*❓एतराज़::-* _हदीस शरीफ़ में तो आता है की नबी करीम सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने फरमाया हम इब्राहिम अलैहिस्सलाम से शक करने में ज़्यादा हक़ रखते हैं! इससे पता चला कि आपने मुर्दों को ज़िंदा करने का सवाल शक़ को वजह से किया था यानी आपको यक़ीन नही था !_
*➡जवाब::-* हदीस पाक के तर्जुमा और समझने में लोग ग़लती करते हैं हदीस पाक यह मतलब नही जो एतराज करने वाले पेश करते हैं हदीस पाक के तर्जुमा और वज़ाहत की तरफ तवज्जोह करें मतलब ख़ुद वाज़ेह हो जाएगा !
_हज़रत अबु हुरैरह रज़ियल्लाहु अन्हु से मरवी है बेशक़ नबी क़रीम सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने फरमाया अगर इब्राहिम अलैहिस्सलाम ने शक किया होता तो हम बनिस्बत इब्राहिम अलैहिस्सलाम के शक करने का ज़्यादा हक़ रखते_
👆🏼इस हदीस पाक यह मतलब नही की हुज़ूर सल्ललाहु तआला अलैही वसल्लम ने यह फ़रमाया की हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने अल्लाह तआला के मुर्दों को ज़िंदा करने में किया था और हमे उनकी निस्बत ज़्यादा शक है बल्कि इस हदीस पाक का तर्जुमा जो बयान किया है इसी से मतलब वाज़ेह हो रहा है  ! ताहम ज़्यादती वज़ाहत के लिए अल्लामा नुवी रहमतुल्लाह अलैही ने इस हदीस पाक की शरह बयान की है इससे एक कॉल बयान किया जा रहा है, आप फ़रमाते है नबी क़रीम सल्लल्लाहु तआला अलैही वस्सलम के इस इरशाद: ‛‛अगर इब्राहिम अलैहिस्सलाम ने शक किया होता तो हम बनिस्बत इब्राहिम अलैहिस्सलाम के शक करने का ज़्यादा हक़ रखते के मायने बयान करने में उलमा के बहुत अक़वाल हैं लेकिन सबसे हसीन और सहीह कौल वह है जो इमाम अबू इब्राहिम मज़नी और उलमा की कई जमाअतों ने बयान फ़रमाया वह यह है !’’
_इस हदीस पाक का मतलब यह कि इब्राहिम अलैहिस्सलाम का शक करना महाल है अगर अल्लाह तआला के मुर्दों को ज़िंदा करने में अम्बिया ए किराम अलैहिस्सलाम से शक वाक़ए हो सकता तो बनिस्बत इब्राहिम अलैहिस्सलाम के शक करने में मैं ज़्यादा हक़ रखता और तहक़ीक़ तुम्हे यकीनन मालूम है कि मुझे मुर्दों को जिंदा करने में कोई शक नही तुम्हें यकीनन इस अमर का भी इल्म होना चाहिए कि बेशक़ इब्राहिम अलैहिस्सलाम को इस मे कोई शक नही था !_
✨ख़याल रहे कि इस हदीस पाक में नबी क़रीम सल्लल्लाहु तआला अलैही वसल्लम ने हज़रत इब्राहिम अलैहिस्सलाम की फ़ज़ीलत बयान की और इज़्ज़ व इन्किसारी से अपने आपको उनसे कम मर्तबा ब्यान किया वरना दूसरे मकाम पर हक़ीक़त बयान करते हुए तमाम कायनात पर अपनी फ़ज़ीलत भी बयान की है !
*📚[तज़किरतुल अम्बिया, सफा 96, 97]*
_*👉🏻नोट::-* पोस्ट को खूब आम करें, बहुत अहम इल्म है साथ ही अगली पोस्ट पढें *"तमाम जानवरो में परिंदों का ही इंतखाब क्यों, मुर्दों को जिंदा करने का मंजर मुशाहदा करने में !*_
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*पोस्ट नम्बर: 3⃣*
*तमाम जानदारों से परिंदों का इंतेखाब क्यों*
➡हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम को चार परिंदे मानुस करने का हुक़्म दिया और हैवानों का हुक़्म नही दिया इसकी क्या वजह है ? इसकी दो वजह है ! एक यह कि परिंदों को अल्लाह तआला ने फ़िज़ा में उड़ने और हवा में बुंलद होने की ताकत अता फरमाई है और हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम को भी ऊंचा मक़ाम यानी मरातिब कि बुलन्दी और मलकुत तक पहुचने की हिम्मत अता फरमाई है इसलिए परिंदों को ज़िब्ह करने और मिला जुला कर रखने का हुक़्म दिया ताकि आपका मोजिज़ा आपजे मरातिब के मुशाबेह हो जाए !!
➡दूसरी वजह यह है कि हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने जब परिंदों को ज़िब्ह कर और उनके टुकड़े टुकड़े कर दिए और मिला जुलाकर पहाड़ों की चोटियों पर रख दिया ! उनको बुलाया तो तमाम टुकड़े मिले जुले गोश्त से जुदा हो कर अपने अपने टुकड़ो से मिल गए ! कयामत के दिन भी इसी तरह तमाम बिखरे हुए जर्रात ज़मा हो जाएंगे और उनसे बदन मारिजे वजूद में आएंगे, उनकी रूह उनसे मिल जाएगी !
*📚[तज़किरतुल अम्बिया, सफा 97]*
_*👉🏻नोट::-* पोस्ट को खूब आम करें, बहुत अहम इल्म है साथ ही अगली पोस्ट पढें *"सभी परिंदों में से चार(मोर, गिद्ध, मुर्ग, कौवे) को खास करने की क्या वजह थी !"*_
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*पोस्ट नम्बर: 4⃣*
*तमाम परिंदों में से चार(गिद्ध, कौआ, मोर और मुर्ग) को खास करने की क्या वजह थी ?*
❄तमाम परिन्दों में से मुर्ग, गिद्ध, कौवा और मोर को मुंखतब करने की वजह यह है कि इंसान को ज़ीनत(खूबसूरती), मर्तबा, बुलन्द मरातिब(ऊँचा पद) से मुहब्बत है और यह औसाफ़(गुण) मोर में भी  पाए जाते हैं ! अल्लाह फरमाता है:
*ख़्वाहिशात की मुहब्बत को लोगों के लिए मुजययन कर  दिया गया है !*
👥इंसान जिस तरह ज़्यादा खाने से शग़फ़(इंटरेस्ट, लगाव) रखता है उसी तरह गिद्ध को भी ज़्यादा खाने से काम होता है ! उसी तरह मुर्ग में भी यह वस्फ़ पाया जाता है ! इंसान माल तलब करने और जमा करने का ज़्यादा हरिस(लालच) होता है उसी तरह कौवा भी माल की तलब ओर जमा करने का हरिस होता है ! क्योंकि सिवाए कौवे के रात को उड़ने वाला कोई परिंदा नही है और सख़्त सर्दी में दिन को सिर्फ कौवा ही निकलता है !!
✨इन चार को मुंखतब करने में इस हिकमत की तरफ इशारा है की इंसान जब तक ख़्वाहिशात ए नफ़सानिया और खवाहिशाते फुर्ज़ और माल की हिरस और ज़ेब व ज़ीनत को खत्म नही करेगा उस वक़्त तक उसके क़ल्ब(दिल) मे रूहानियत का असर नही होगा और न उसे अल्लाह तआला के जलाल के नूर से राहत हासिल होगी !
*📚[तज़किरतुल अम्बिया, सफा 98, 99]*
_*👉🏻नोट::-* पोस्ट को खूब आम करें, बहुत अहम इल्म है साथ ही अगली पोस्ट पढें *"चंद क़ुरआनी अलफ़ाज़ ए मुबारका की जरूरी तशरीह !"*_
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*पोस्ट नम्बर: 5⃣*
*चंद क़ुरआनी अलफ़ाज़ ए मुबारका की जरूरी तशरीह*
🔹हज़रत यूनुस अलैहिस्सलाम को मछली के पेट मे जाने की वजह से ज़ुन्नुन और साहिबुल हौत कहा गया है क्योंकि नून और हौत दोनों का मायना मछली है अल्लाह तआला ने इरशाद फ़रमाया:
*और ज़ुन्नुन(को याद करो) जब चला गुस्सा में भरा तो गुमान किया कि हम उस पर तंगी न करेंगें !*
🔸यह तरजुमा आला हजरत इमाम अहमद रज़ा खान रहमतुल्लाहि तआला अलैह का है और सही भी यही है कि कई और तराज़ीम *“अन-लन-नक़्दी-र-अलैही”* में का तर्जुमा हम उन पर काबू न पा सकेंगें, हम उस पर गिरफ्त न करेंगे, हम न पकड़ सकेंगें इस तरह के तर्ज़मे ग़लत और बातिल है !
✒अल्लामा राज़ी रहमतुल्लाह अलैही फ़रमाते हैं कि जो लोग अम्बिया किराम को गुनाहगार ठहराते हैं की उनसे ज़रूर गुनाह सर ज़द होतें हैं वह इस आयत से अपनी दलील पेश करते हैं कि यूनुस अलैहिस्सलाम ने गुमान किया कि रब मुझे नही पकड़ सकेगा ! यह कहना गुनाह है लेहाज़ा नबी गुनाहगार हो सकते हैं !
*✨अल्लामा राज़ी रहमतुल्लाह अलैहि उन लोगों का रद्द करते हुए फ़रमाते हैं:* अगर यह मायने किया जाए कि आप ने रब के मुताल्लिक यह गुमान किया कि रब आजिज़ है मुझे पकड़ नही सकेगा तो यह कुफ़्र है ऐसी निस्बत तो एक मोमिन की तरफ भी नही कर सकते, तो अम्बिया किरामकी तरफ़ कैसे कर सकतें हैं ? इसलिए इस बात की तोज़ीह ज़रूरी है, वह यह कि इसका मायने हो *“आपने गुमान किया कि हम उन पर तंगी नही करेंगें”* इसलिए कि कुरान पाक में और मकामात पर भी इस मायने में इस लफ्ज़ का इस्तेमाल है !
*📚[तज़किरतुल अम्बिया, सफा 199]*
_*👉🏻नोट::-* पोस्ट को खूब आम करें, बहुत अहम इल्म है साथ ही अगली पोस्ट पढें *"चुंटियों की समझदारी”*_
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*पोस्ट नम्बर: 6⃣*
*चींटियों की समझदारी*
✨चींटियों के हालात में गौर व फ़िक़्र करने से ये वाज़ेह हो जाता है कि अल्लाह तआला ने उन्हें शउर ओर समझ दे रखी है यही वजह है की यह गर्मियों में इतना तोषा जमा कर लेती हैं जो सर्दियों में उन्हें काफी हो सके ! और यह दानों के दो दो टुकड़े कर देती हैं इस डर के पेशे नज़र की यह नमी से कहीं उग न पड़े ! अलबत्ता धनिया और मसूर के 4-4 टुकड़े का देतीं हैं क्योंकि इनके 2 टुकड़े कर भी दिए जाएं तो भी ये उग जाते हैं जैसे टुकड़े न किये जायें तो उगते हैं इसके बाद अल्लामा आलूसी फ़रमाते हैं--:
🔅चींटियों के मुताल्लिक जो बयान किया है इससे और किस्म की मिसालों से पता चलता है कि उन्हें इल्म कुल्ली इस्तदलाली हासिल होता है शैखुल अशराफ ने इसी दलाइल क़ायम किये हैं कि तमाम हैवानात को नफ़्स नातिका यानी कुल्लियात का इदराक हासिल होता है !
*📚(तज़किरतुल अम्बिया,  सफा 223)*
_*👉🏻नोट::-* पोस्ट को खूब आम करें, बहुत अहम इल्म है साथ ही अगली पोस्ट पढें *"हज़रत आदम अलैहिस्सलाम को इल्म कैसे अता किया गया ?”*_
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*पोस्ट नम्बर: 7⃣*
*हज़रत आदम अलैहिस्सलाम को इल्म कैसे अता किया गया*
💫आप को तमाम चीज़ों का इल्म दिया गया यानी अल्लाह तआला ने अपनी तमाम मख़लूकात में से एक एक जिन्स आपको दिखा दी और उसका नाम बताया ! मसलन घोड़ा दिखाकर बता दिया गया कि इसे घोड़ा कहतें हैं ! ऊंट दिखाकर बता दिया गया कि इसे ऊंट कहतें हैं ! इसी तरह एक एक चीज़ दिखाकर उसके नाम बता दिए !
🌟आदम अलैहिस्सलाम को यह खुसीसियत हासिल थी की आपको चीज़ों के नाम हर ज़बान में बता दिए गये थे ! और वही ज़बाने आपकी औलाद में मुतफररिक तौर पर पाई जाती हैं ! यानी एक चीज़ का नाम आपने हर हर ज़बान में बताया जो ज़बानें भी ईजाद होनी थीं आपको उनका इल्म पहले से अता कर दिया गया !
*📚(तज़किरतुल अम्बिया, सफा 32)*
*👉🏻नोट::-* पोस्ट को खूब आम करें, बहुत अहम इल्म है साथ ही अगली पोस्ट पढे *इब्लीस की असल क्या है*
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*पोस्ट नम्बर: 8⃣*
*इब्लीस की असल क्या है*
🔮कुछ हज़रात इस तरफ हैं की इबलीस फरिश्तों से अलहदा है क्योंकि फ़रिश्ते नूर से पैदा किये गए हैं और यह नार(आग) से !
*💎अल्लाह तआला ने फरमाया:* इबलीस जिन्नों से था उसने अपने राब की नाफरमानी की !
⁉सवाल यह होता है उसे सज्दा का हुक़्म कैसे था ? हालांकि ज़ाहिर तौर पर तो हुक़्म सिर्फ़ फरिश्तों को है ! तो इसका जवाब उन हज़रात की तरफ से यह दिया जाता है कि यह कसरते इबादत की वजह से फरिश्तों ही में दाख़िल था और मलाइका वाले अहकाम ही उस पर जारी होते थे !
💫यानी तगलिबन उस पर हुक़्म जारी हुआ जैसे सरदारों को हुक़्म दिया जाए तो उनके मातेहत भी इसी हुक़्म में दाख़िल होते हैं ! लेकिन कुछ मुहक़्क़ीन यानी *अल्लामा बेगवी वाहिदी, क़ाज़ी बैज़ावी, अल्लामा आलूसी और अल्लामा राज़ी* इस तरफ़ हैं कि यह फरिश्तों से ही था !
🌟अल्लामा आलूसी फ़रमाते हैं:: इब्लीस को अगरचे रब तआला ने जिन्न कहा ! हज़रत आयशा रज़ियल्लाहु तआला अन्हा की रिवायत में भी उसे जिन्न कहा गया लेकिन जिन्न कहने से उसके फ़रिश्ता होने में कोई फ़र्क़ नही पड़ता ! उनमे कोई मनाफ़ात नही इसलिए कि जिन्न कभी तो फरिश्तों के मद्दे मुक़ाबिल एलाहदा मख़लूक़ को भी कहते हैं और कभी फरिश्तों की एक क़िस्म को भी जिन्न कहा जाता है !
*📚(तज़किरतुल अम्बिया, सफ़ा 39, 40)*
*👉🏻नोट::-* पोस्ट को खूब आम करें, बहुत अहम इल्म है साथ ही अगली पोस्ट पढे *“इबलीस का नाम इबलीस या शैतान क्यों ?”/ “क़ानून ए क़ुदरत और क़ानून ए आदत में फ़र्क़”*
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*पोस्ट नम्बर: 9⃣*
*इब्लीस का नाम इबलीस या शैतान क्यों ?*
♦इबलीस का मरदूद होने से पहले सुरयानी ज़बान में नाम  अज़ाज़िल और अरबी ज़बान में हारिस था ! जब अल्लाह तआला के हुक़्म का इंकार किया तो इबलीस नाम हुआ जिसका मायने है ख़ैर से दूर होना और अल्लाह तआला की रहमत से नाउम्मीद होना, उसे शैतान भी कहा गया है अगर उसका माद्दा शतन हो तो मायने होगा हक़ से दूर होने वाला, अगर वह शैताह से मखुज़ है तो मायने होगा हलाक़ होने वाला और जल जाने वाला !
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*क़ानूने क़ुदरत और क़ानूने आदत में फ़र्क़*
*♻अल्लाह तआला* की आदत शरीफ़ा यह है कि आम तौर पर कामों के असबाब बना दिये हैं इसी तरह इंसानों की पैदाइश में भी कानून ए आदत अस्बाब के मातहत कर दिया गया कि मां और बाप से औलाद की पैदाइश होती है लेकिन यह कानून ए कुदरत नही !
⚜कानून ए क़ुदरत की *अल्लाह तआला* ने एक मिसाल कायम कर दी है कि मैं इस तरह भी कर सकता हूं अस्बाब की मुझे कोई  मोहताजी नहीं, मर्द और औरत के बग़ैर अपने दस्ते क़ुदरत से मिट्टी का कालिब बनाकर उसमें रूह फुंक *हज़रत आदम अलैहिस्सलाम* को पैदा फ़रमाया और औरत के बग़ैर मर्द की पसली चाक करके आम आदत के ख़िलाफ़ हज़रत हव्वा को पैदा फरमा कर यह वाज़ेह कर दिया कि मैं बग़ैर औरतों के मर्दो से औलाद पैदा करने पर भी क़ादिर हु ! और औरत से बग़ैर उसके खाविंद के बेटा पैदा करके यह भी वाज़ेह कर दिया कि मेरी क़ुदरत से यह भी कोई बईद बात नही ! यानी हज़रत मरयम से *हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम* की पैदाइश तो एक आम तरीका के मुताबिक़ ही हुई लेकिन इसमें मर्द का कोई वास्ता नही, सिर्फ़ जिबराईल अमीन की फुंक का असर है क्योंकि ईसा अलैहिस्सलाम का कोई बाप नही !
*📚(तज़किरतुल अम्बिया, सफ़ा 43, 45)*
*👉🏻नोट::-* पोस्ट को खूब आम करें, बहुत अहम इल्म है साथ ही अगली पोस्ट पढे *“शैतान ने कहाँ से वसवसे वाली गुफ़्तगू की ?”*
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*पोस्ट नम्बर: 🔟*

*शैतान ने कहां से वसवसे वाली गुफ़्तगू की ?*
✨शैतान ने आदम व हव्वा अलैहिस्सलाम से जो गुफ़्तगू की वह कवि वसवसों के ज़रिए की ! उसने ज़मीन से ही वसवसे की ज़बान में वह कुछ कह दिया जो कहना चाहता था जब से उसे जन्नत से निकाल दिया गया ! फिर उसे आसमानों में चढ़ने की इजाज़त न थी न ही वह चढ़ सका ! कुरआन मजीद या किसी किसी हदीस में वारिद नही हुआ कि शैतान आदम व हव्वा के पास जन्नत में पहुँचा हो कुरान पाक में तो सिर्फ यही अलफ़ाज़ वारिद हैं:
*_उन दोनों को शैतान ने वसवसे में डाल दिया_*
📖और सूरत ताहा आयात “120” में है शैतान ने उन(आदम) को वसवसे में डाल दिया, शैतान को वसवसे में डालने के लिए जिस्मानी तौर पर किसी के पास जाना ज़रूरी नही और और न ही यह जरूरी की वह जिसे वसवसे में डाले व उसे देखे भी !
*👉🏻तम्बीह::* जिन अक़वाल में शैतान का सांप के ज़रिए जन्नत में जाना साबित है या शैतान का जन्नत के दरवाजे पर बैठकर वसवसे डालने का ज़िक़्र है वह बनी इसराइल के मन घड़ंत अक़वाल हैं !
👑इब्ने कसीर ने कहा: यहां मुफ़्सेरिन ने कई इस्राइली खबरें नक़्ल कर दी हैं और इमाम राज़ी फ़रमाते हैं कि जरूरी है कि ऐसी रिवायत की तरफ बिल्कुल इल्तिफ़ात न किया जाए !
*💡फायदा::-* शैतान को अल्लाह तआला ने इतने तसर्रुफात की ताक़त दे दी है कि वह कहीं भी लोगों के दिलों में वसवसे डाल लेता है और हज़रत इज़राइल मलकुल मौत फ़रिश्ते इतनी ताकत हासिल है कि वह एक लम्हे में तमाम रुए जमीन के कोने कोने में रूह कब्ज़ कर सकता है ! और सैयदना मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैही वसल्लम को अल्लाह तआला ने उनसे ज़्यादा तसर्रुफात की ताक़त दी है ! तो इसमें दूसरे किसी का क्या नुकसान ? आप अपने उम्मती की हालते ज़ार को देखें उसकी हाज़त को पूरा करें वह कहीं भी हो ? इसमें न तो कोई शिर्क है और न ही अक़्लन मुहाल है !
*📚(तज़किरतुल अम्बिया, सफा 48)*
*👉🏻नोट::-* पोस्ट को खूब आम करें, बहुत अहम इल्म है साथ ही अगली पोस्ट पढे *“40(चालीस) के अदद की हिक़मत”*
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*पोस्ट नम्बर: 1⃣1⃣*

*चालीस(40) के अदद में हिकमत*
🌻मूसा अलैहिस्सलाम को चालीस दिनों के बाद तौरात अता की गई कि आप चालीस दिन दुनिया वालों से अलग थलग होकर अल्लाह तआला की याद में मशगूल रहे इस तरह उसके ज़िक़्र व फ़िक़्र से आपके क़ल्ब व रूह को एक ख़ास क़िस्म की क़ुव्वत हासिल हो जाये ! जो इस अज़ीम बोझ को उठाने के क़ाबिल हो जाये !
💡बेशक़ चालीस को एक खुशुशीयत हासिल है इसी वजह से अम्बिया किराम को 40(चालीस) साल की उम्र में नुबूवत के एलान का हुक़्म दिया जाता रहा ! उनसे रब तआला का कलाम बजरिये वही इसी उम्र में हुआ ! फिर औलिया ए एज़ाम का भी यही मामूल है कि यह चिल्ला कशी करते हैं यानी चालीस(40) दिन तक दुनिया से अलग थलग रहकर अल्लाह तआला की याद में मशगूल होते हैं ! जिससे उनमे हिकमत और नूर के चश्में फुट पड़ते ! रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैही वसल्लम का इरशाद ए गिरामी है कि जो शख़्श 40(चालीस) सुबह ख़ुलूस से दुनिया से अलग थलग हो कर  अल्लाह तआला को याद करता है तो उसके दिल से ज़ुबान में हिकमत के चश्में नमूदार हो जाते हैं !
💫काश लोगों को यह समझ आ जाये कि 40(चालीस) दिन तक फोत शुदा के लिए कुरान खानी का एहतमाम करते रहना फिर चालीस(40) पर इसके लिए इज़तमाई दुआ कितनी मक़बूलियत का सबब होगी ! ख़ैर जिस बदकिस्मत के लिए दुआ का एहतमाम नही किया जाता हमे उनसे झगड़ने की जरूरत नही !
*📚(तज़किरतुल अम्बिया, सफा 315, 316)*
*👉🏻नोट::-* पोस्ट को खूब आम करें, बहुत अहम इल्म है साथ ही अगली पोस्ट पढे *“नबी करीम सल्लल्लाहु तआला अलैही के भूलने में हिक़मत”*
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*पोस्ट नम्बर: 1⃣2⃣*

*नबी करीम सल्लल्लाहु तआला अलैही वस्सलम के भूलने में हिक़मत*
📃हज़रत अबहुरेरा रज़ियल्लाहु अन्हु से मरवी है बेशक़ नबी करीम सल्लल्लाहु तआला अलैही  वसल्लम नमाज़ की तरफ निकले जब आपने तकबीर कही तो फिर गए और लोगों की तरफ़ इशारा किया कि वह अपनी जगह ठहर जाएं आप मस्जिद से निकल गए आपने ग़ुस्ल फ़रमाया फिर तशरीफ़ लाये आप के सर से पानी के क़तरे टपक रहे थे आपने नमाज़ पढ़ी जब नमाज़ पढ़ ली तो आपने फ़रमाया बेशक़ मैं हालते जनाबत में था ग़ुस्ल करना भूल गया था !
📖इस हदीस पाक की शरह में मुल्ला अली कारी रहमतुल्लाह अलैहि तहरीर फ़रमाते हैं- आपसे भूल वाक़ए हुई ताकि उम्मत के लिए सुन्नत बन जाये और इस लिए की अगर किसी इमाम से ऐसा वाकिया पेश आये तो उसे शर्म न आये !
🌹आपके भूलने की वजह सिर्फ यही थी कि आप का फेयल उम्मत के लिए सुन्नत बन जाये वरना आपकी उम्मत के लिए मशाइख़ दूसरों की जनाबत पर भी इत्तेला रखते हैं !
💫हज़रत याफई रहमतुल्लाह अलैही ने एक वाक़्या नक़्ल फ़रमाया की बेशक़ इमामुल हरमैन अबुल मआली इब्न इमाम अबु मुहम्मद जुवैनी एक दिन सुबह की नमाज़ के बाद बैठे दर्स दे रहे थे वहां से सूफ़िया किराम में से एक शैख़ का गुज़र हुआ उनके साथ उनके अहबाब भी थे वह किसी दावत पर जा रहे थे इमामुल हरमैन ने दिल मे ख्याल की इन लोगों का कोई और काम नही सिवाय खाने और रक़्स करने के वह शैख़ जब दावत से वापस लौटे तो फरमाने लगे ए फ़क़ीह तुम क्या कहते हो उस शख़्श के बारे में जो सुबह की नमाज़ हालते जनाबत में पढ़ा देता है और मस्जिद में बैठ कर उलूम का दर्स देता है और लोगों की ग़ीबत करता है ! इमामुल हरमैन को शैख़ की बात सुन कर याद आया कि मुझ पर तो ग़ुस्ल लाज़िम था लेकिन मैं भूल गया इसके बाद उनके दिल मे मशाइख़ के मुताल्लिक अच्छा एतकाद आ गया ! यानी मशाइख़ को साहिबे क़शफ समझने लगे !
*_👆🏼इस वाक़ये से यह बयान  करना मक़सूद है कि जब मशाइख़ दूसरों की हालत जनाबत पर मुत्तला हो सकते हैं तो हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैही वसल्लम को आने आप पर मुत्तला होना जरूरी था लेकिन अल्लाह तआला ने आप को भुला कर आपकी उम्मत के लियर सुन्नत बना दिया !_*
*📚(तज़किरतुल अम्बिया, सफा 497)*
*👉🏻नोट::-* पोस्ट को खूब आम करें, बहुत अहम इल्म है साथ ही अगली पोस्ट पढे *“नबी करीम सल्लल्लाहु तआला अलैही वसल्लम का खुल्क़ कुरान, कुरान को खुल्क़ क्यों कहा ?”*
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*पोस्ट नम्बर: 1⃣3⃣*

*नबी करीम सल्लल्लाहु तआला अलैही वसल्लम का खुल्क़ कुरान, कुरान को खुल्क़ क्यों कहा ?”*
🌹हज़रत सअद बिन हश्शाम रहमतुल्लाह अलैहि कहतें हैं हज़रत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा की खिदमत में हाज़िर हुआ और अर्ज़ की ए उम्मुल मोमिनीन(मोमिनों की मां)!
मुझे आप रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के अख़लाक़ के मुताल्लिक़ बताएं आपने फ़रमाया क्या तुमने कुरान नही पढा ? मैंने कहा क्यों नही कुरआन पढा है आपने कहा कि नबी करीम सल्लल्लाहु तआला अलैही वसल्लम का खुल्क़ कुरान है !
*💫नुक़्ता::-* नबी करीम सल्लल्लाहु तआला अलैही वसल्लम को हज़रत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा ने खुल्क़ इसलिए कहा कि कुरआन पाक ने जितने मकारीमे अखलाक़ का तज़किरा किया वह तमाम आप मे पाए जाते थे !
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_📖अगर कुरआन ने कहा:-_
*बेशक़ अल्लाह तआला अदल व एहसान करने का हुक़्म देता है*
💫रब तआला के इस हुक़्म के मुताबिक़ क़ायनाते आलम में नज़र दौड़ा कर दिखिये तो आप जैसा कोई आदिल व मोहसिन नज़र नही आएगा !
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_📖अगर रब्बे कुद्दुस ने इरशाद फ़रमाया_
*जो तुम्हे मुसीबत व तक़लीफ़ पहुँचे उस पर सब्र करो*
💫मालिकुल मुल्क के इस हुक़्म पर अमल करने की दरख्शां मिसाल भी आपने कायम की !______________________________
_📖अगर ख़ालिक़ ए कायनात ने यह कहा_
*आप इनको माफ़ करें और दरगुज़र करें*
💫तो माफ़ करने और दरगुज़र करने का अज़ीम मनसब भी आपको हासिल हुआ ऐसा अज़ीम मकाम किसी और को हासिल न हो सका ! गर्ज़ कुरआन पाक के हर हुक़्म की जलवागरी आप में है और कुरान पाक ने जिन चीज़ों के इज्तेनाब का हुक़्म दिया उनसे कामिल इज्तेनाब किया इसलिये आपका खुल्क़ कुरआन पाक है !
💎दूसरी वजह यह कि कुरआन पाक ने आपके खुल्क़ को बयान करते हुए फ़रमाया *बेशक़ आप अज़ीम खुल्क़ पर हैं* जिस चीज़ को कुरान ने अज़ीम कहा उसकी क़द्र इंसान बयान करे तो बयान करे कैसे ?
*📚(तज़किरतुल अम्बिया, सफा 498, 499)*
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*पोस्ट नम्बर: 1⃣4⃣*

*“फ़र्ज़ और नफ्ली सदक़ा में फ़र्क़ क्यों ?”*
🎁नफ्ली सदक़ात और वक़्फ़ से आके रसूल पर माल ख़र्च करना जायज़ है फ़र्ज़ जायज़ नही क्योंकि फ़र्ज़ सदक़ा करने वाला अपने जिम्मे लाज़िम हक़ को अदा करके अपने आपको पाकिज़ा करता है और जो माल बतौर सदक़ा अदा करता है व मुस्तअमल पानी की तरह हो जाता है जिसमें पाक करने की सलाहियत ख़त्म ही जाती है लेकिन नफ्ली सदक़ा करने वाला अपनी खुशी से वह माल देता है जो उसके जिम्मे लाज़िम नही होता है ! लिहाजा वह मैल कुचैल की हैसियत नह रखता जिस तरह एक बा वुज़ू शख़्श पानी को ठंडक हासिल करने के लिए इस्तमाल करे उसके जिस्म पर जाहिर नापाकी भी न हो वह पानी अपनी असली हालत पर बरकरार रहता है पाक करने की इसमें सलाहियत होती है इसी तरह यह माल भी पाक व साफ़ होता है मैल कुचैल से पाक होता है आले रसूल की शान के लायक होता है !
*📚(तज़किरतुल अम्बिया, सफा 501)*
*👉🏻नोट::-* पोस्ट को खूब आम करें, बहुत अहम इल्म है साथ ही अगली पोस्ट पढे *“अम्बिया ए किराम अलैहिस्सलाम एहतलाम से महफूज़”*
_एहतलाम= Night Faal,_
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*📢गौर करें*

Night Faal जिसे उर्दू में एहतलाम और शुद्ध हिंदी में स्वप्नदोष कहतें है ! इस अम्र में शैतान की मुदाखलत होती है ! शैतान ख़्वाब में आकर बदज़हनी पैदा करता है !!
एक एहतलाम वो होता है जिसमे शैतान की मुदाखलत नही होती बल्कि ये जिस्मानी तौर पर ज़रूरी है ! बच्चा जब जवानी की दहलीज़ पर क़दम रख चुकता है तो उसे एहतलाम शुरू होते है !!
ये होगयी पूरी बात एह्तिलाम के मुताल्लिक, कभी वक़्त मिलेगा तो गहराई से रौशनी डाली जाएगी !!
*आज रात को जो उनवान पेश किया जाएगा जिसके बारे में आगाह कल किया गया था कि अम्बिया अलैहिस्सलाम एह्तिलाम से पाक है ! इस उनवान पर रात को पूरी डिटेल दी जाएगी !*
*हमारा अभी ये msg आपको देना आपके ज़हन को ताजा करना है कि आप रात को भेजे गए msg को समझ सकें*
_इल्मे दीन सीखने में शर्म नही करनी चाहिए, और जरूरी मसाइल सीखना फ़क़त मज़े के लिए न हो ये गुनाह है बल्कि अपनी इस्लाह के लिए हो_
*जुड़े रहें मरहबा ग्रुप के साथ ओर अपने इल्म में करें इज़ाफ़ा*
_पोस्ट को आगे सेन्ड करें_


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*पोस्ट नम्बर: 1⃣5⃣*

*अम्बिया ए किराम अलैहिस्सलाम एहतलाम से महफूज़*
💖अम्बिया ए किराम अलैहिस्सलाम एह्तिलाम से महफूज़ रहतें हैं क्योंकि नींद की हालत शैतान के आने की अलामत है ! अल्लामा इब्ने हजर असकलानी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं कि जब हज़रत आइशा रज़ियल्लाहु अन्हा ने फरमाया की नबी करीम सल्लल्लाहु तआला अलैही वसल्लम रमज़ान शरीफ़ की फ़ज़्र में बगैर एहतेलाम के हालते जनाबत में होते तो ग़ुस्ल फ़रमाते और रोज़ा रखते !
👆🏼तो इस हदीस से यह मक़सद वाज़ेह हो गया कि अम्बिया ए किराम की अहतेलाम की सूरत में तो नही होता था कि वह ख़्वाब में जिमाअ करें क्योंकि *यह उस शख़्श को कैफ़ियत हासिल होती है जिससे शैतान नींद की हालत में खेले और अम्बिया किराम इससे महफूज़ है !*
💫लेकिन एहतेलाम से अगर सिर्फ मनी निकलना मुराद लिया जाए बगैर जिमाअ देखने के नींद की हालत में तो यह अम्बिया किराम से महाल नही ! क्योंकि यह उमूर खलकिया और आदिया से है इसमें अम्बिया किराम ओर दूसरे हज़रात बराबर हैं चूंकि इसमें शैतान जी दख़ल अंदाज़ी नही होती है !
*📚(तज़किरतुल अम्बिया, सफा 503)*
*👉🏻नोट::-* पोस्ट को खूब आम करें, बहुत अहम इल्म है साथ ही अगली पोस्ट पढे *“नबी करीम सल्लल्लाहु तआला अलैही वसल्लम को पसीना ज़्यादा आता था / हुज़ूर अलैहिस्सलाम के हाथों क़त्ल होने वाला बदबख़्त !”*
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*पोस्ट नम्बर: 1⃣6⃣*

*नबी करीम सल्लल्लाहु तआला अलैही वस्सलम को पसीना बहुत आता था*
✨क्योंकि नबी करीम सल्लल्लाहु को हया ज़्यादा आती थी ! और जिसे हया ज़्यादा उसे पसीना ज़्यादा आता है !
🏺किसी किस्म का इत्र, कस्तूरी हर किस्म की खुशबू वाली आशिया में ऐसी खुशबू नही पाई गई जो मेरे हबीब सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के पसीना मुबारक़ में थी ! मेरे आका व मौला को एक आम इंसान समझने वालों ने कभी इस पर गौर नही किया कि उनके पसीने से बदबू आती है कोई करीब बैठना पसन्द नही करता, लेकिन हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का पसीना खुशबूदार चीज़ों की खुशबू बढाने के लिए होता था ! और आपके पसीने से बरक़त हासिल होती थी ! हज़रत उम्मे सलीम यह अर्ज़ करने पर की हम आपके पसीने को बच्चों के लिए बरक़त हासिल करने के लिए इस्तेमाल करेंगे ! आप हुज़ूर अलैहिस्सलाम ने मना नही फ़रमाया बल्कि इरशाद फ़रमाया !
*तुमने दुरुस्त काम किया है यकीनन मेरे पसीने में बरकत है !*
*👆🏼इस हदीस पाक से यह समझ आया कि नेक लोगों के आसार से तबर्रुक हासिल करना और उनका तबर्रुक हासिल करना मुस्तहब है !*
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*नबी करीम हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैही वसल्लम के हाथों क़त्ल होने वाला बदबख़्त*
💫हज़रत अबु हुरैरह रदियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी है कि हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैही वसल्लम ने फ़रमाया:
की अल्लाह तआला का उस कौम पर शदीद ग़ज़ब है जिसने अपने नबी से यह सलूक किया ! आपने अपने सामने वाले दांत मुबारक़ की तरफ इशारा करते हुए इरशाद फ़रमाया !(जिस दांत मुबारक़ को ग़ज़वा ए उहद में शहीद किया गया था) और उस शख़्श पर भी अल्लाह का शदीद गज़ब है जिसको अल्लाह तआला की राह में खुद उसके रसूल ने क़त्ल किया हो !
(जिस शख़्श को उस हस्ती ने किया हो जो रहमतुललिल आलमीन है तो यकीनन यह शक्श तमाम लोगों से बदबख़्त होगा, जिस शख्श को रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैही वसल्लम ने खुद अपने हाथ मुबारक़ से क़त्ल किया वह अबी बिन ख़ल्फ़ था !)
*📚(तज़कीरतुल अम्बिया, सफा 510, 522)*
*👉🏻नोट::-* पोस्ट को खूब आम करें, बहुत अहम इल्म है साथ ही अगली पोस्ट पढे *“मेराज़ की रात को जिबराईल अमीन नबी करीम सल्लल्लाहु तआला अलैही वसल्लम को अम्बिया ए किराम से तआरुफ़ क्यों करा रहे थे / हुज़ूर अलैहिस्सलाम का मेराज़ जागते हुए था !”*
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*पोस्ट नम्बर: 1⃣7⃣*

*“मेराज़ की रात को जिबराईल अमीन नबी करीम सल्लल्लाहु तआला अलैही वसल्लम को अम्बिया ए किराम से तआरुफ़ क्यों करा रहे थे”*
💖हमारे नबी करीम सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम अल्लाह तआला की मुलाक़ात की तमन्ना में क़ामिल तौर पर इस्तिरगराक में थे सिर्फ मक़सद अज़ीम रब का मुशाहिदा करना था आप मख़लूक़ की तरफ तवज्जोह करने से ग़ाफ़िल थे ! जैसे कि रब तआला ने फरमाया:
*आंख न किसी की तरफ फिरी और न हद से बढ़ी*
🔅यह आपके इस्तिगराक़ ताम की तरफ़ क़ामिल इशारा है इसी वजह से हर मकाम पर जिबराईल अलैहिस्सलाम आपको मुतवज्जेह करते रहे कि यह फलां नबी हैं आप इनको सलाम करें !
➖🔹➖🔹➖🔹➖🔹➖🔹
*“हुज़ूर अलैहिस्सलाम का मेराज़ जागते हुए था”*
✨अल्लामा तैयबी रहमतुल्लाह  अलैही ने फरमाया की हम ने बुख़ारी और तिर्मिज़ी की रिवायत जो इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा से मरवी है उसे ज़िक़्र की की अल्लाह तआला के इस इरशाद में की:
*और हमने न किया वह दिखाना जो तुम्हें दिखाया था मगर लोगों की आजमाइश*
यानी आपको हालाते बेदारी में मेराज कराके लोगों के लिए आजमाइश बनाया कि कौन ईमान लाता और कौन नही !
💫रुया से मुराद आंख है (ख़्वाब देखना मुराद नही) जो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम को दिखाया गया है यह वह सैर की रात है जिसका ज़िक़्र कुरान पाक में हुआ कि आपको मस्जिद हराम से अक़्सा(बैतूल मुक़द्दस) तक कि सैर कराई गई !
🕋रब तआला ने हुज़ूर की मेराज का ज़िक्र करते हुए फ़रमाया “इसरा बिअब्दिही” जो इस पर दलालत कर रहा है कि यह वाक़या बेदारी का था और आपको जिस्मानी तौर पर हुई क्योंकि अब्द रूह और जिस्म दोनों के मजमुआ पर बोला जाता है अगर ख़्वाब का वाक़या होता तो “इसरा बिरूही अब्दिही” कहा जाता ! और कबीर में अल्लामा राज़ी ने भी ज़िक़्र किया है !
*📚(तज़कीरतुल अम्बिया, सफा 526, 527)*
*👉🏻नोट::-* पोस्ट को खूब आम करें, बहुत अहम इल्म है साथ ही अगली पोस्ट पढे *“सैयदुल अम्बिया अलैहिस्सलाम और मूसा अलैहिस्सलाम के कलाम में फ़र्क़”*
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*पोस्ट नम्बर: 1⃣8⃣*

*“सैयदुल अम्बिया अलैहिस्सलाम और मूसा अलैहिस्सलाम के कलाम में फ़र्क़”*
🔹मूसा अलैहिस्सलाम ने अपना ज़िक़्र पहले किया और रब तआला का बाद में और नबी करीम सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने रब का ज़िक़्र पहले किया और अपना बाद में ! मूसा अलैहिस्सलाम ने सिर्फ अपना ज़िक़्र की मेरे साथ मेरा रब है लेकिन हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैही वसल्लम ने हज़रत अबुबकर सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु को भी अपने साथ मिलाया और फ़रमाया बेशक़ अल्लाह हमारे साथ है !
♻गोया की मूसा अलैहिस्सलाम ने अपनी कोम को इस काबिल नही समझा कि जो मुझे रब की मअईयत हासिल है वह मेरे कोम को भी हासिल है ! लेकिन हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैही वसल्लम ने हज़रत अबुबकर सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु को भी अपने साथ मिलाया और फ़रमाया बेशक़ अल्लाह हमारे साथ है !
*🔍नुक़्ता::-* हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैही वसल्लम ने हज़रत अबुबकर सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु को कहा कुछ ग़म न करो इससे मक़सद वाज़ेह हो रहा की हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम को मालूम था कि अबु बक्र रज़ियल्लाहु अन्हु को अपनी जान का ख़तरा नही बल्कि इन्हें मेरी फ़िक़्र लाहक़ है !अगर अबू बकर खुद डरते और इन्हें अपनी जान की फ़िक़्र होती तो हुज़ूर फ़रमाते डरो नही !
*अल्लामा बैजावी पहले पारा की तफ़्सीर में लिखतें हैं:*
✨इन पर कोई ख़ौफ़ नहीं कि इन पर कोई नापसन्दीदा चीज़ का वकुअ हो और न ही इनसे कोई महबूब चीज़ फ़ौत हो गई कि इन्हें इस पर कोई ग़म लाहक़ हो !
💫वाज़ेह हुआ की हिज़्न का ताल्लुक़ महबूब चीज़ पर कोई ख़तरा लाहक़ होने की वजह से ग़म के आने से है यह भी ख़्याल रहे कि मूसा अलैहिस्सलाम की कौम ने अपनी फ़िक़्र की थी और हज़रत सिद्दीक़ अकबर रज़ियल्लाहु अन्हु ने नबी करीम सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की !वाज़ेह हुआ कि जिस तरह नबी क़रीम सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम सैय्यदुल अम्बिया हैं ऐसे हि हज़रत अबू बक्र सैय्यदुल उमम हैं !
*📚(तज़किरतुल अम्बिया, सफा 559)*
_(इन नुक़्तों और बारीकियों को पढ़ते वक्त गारे सौर के वाक़ये को ज़हन में रखें, जिसमें वो सांप, वो गार के सुराखे, मकड़ी के जाले, कबूतरी के अंडे, गार की दूसरे मुहाने पर दरिया वगैरह !!)_
*👉🏻नोट::-* पोस्ट को खूब आम करें, बहुत अहम इल्म है साथ ही अगली और *आख़री पोस्ट पढे, “कलामुल मलूक मलुकुल कलाम”*
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*पोस्ट नम्बर: 1⃣9⃣*
आख़री पोस्ट...
*“कलामुल मलूक मलुकुल कलाम”*
*✨जब कुफ़्फ़ार गारे सौर पर पहुँचे तो हज़रत अबू बकर सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु ने अर्ज़ किया कि या रसूलल्लाह कुफ़्फ़ार ने हमारा खोज लगा लिया है ! अगर वह अपने पांव की तरफ हमें देखते हैं तो हमें देख लेंगे तो हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैही वस्सलम ने फरमाया गम न करो बेशक़ अल्लाह हमारे साथ है !* _मूसा अलैहिस्सलाम की कौम ने जब फ़िरोनियो को देखा तो कहने लगे हम तो पा लिए गए यानी अब तो वह हमें पकड़ लेंगे तो उनके जवाब में मूसा अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया ऐसा हरगिज़ नही होगा बेशक़ मेरे साथ मेरा रब है जो मुझे हिदायत देगा !_
*📚(तज़किरतुल अम्बिया, सफा 558)*
*उनवान खत्म....*
_(इन नुक़्तों और बारीकियों को पढ़ते वक्त गारे सौर के वाक़ये को ज़हन में रखें, जिसमें वो सांप, वो गार के सुराखे, मकड़ी के जाले, कबूतरी के अंडे, गार की दूसरे मुहाने पर दरिया वगैरह !!)_
नोट::- आपने इन सभी उन्नीस पोस्ट से क्या इल्म हासिल किया, क्योंकि ये बड़े बारीक नुक़्ते थे जो उलमा की सोहबत में मिलते या किताबों से और हमारे लिए आगे क्या हिदायत और सलाह है आपकी ! रिप्लाय जरूर करें !
*7067954516*
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