औरतों के मसाइल / हैज़ का बयान

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*⤵औरतों के मसाइल/हैज़ का बयान*

*पोस्ट नम्बर-: 1*

*📖तरजुमा ए कंजुल ईमान-:* _"ऐ महबूब तुमसे हैज के बारे में सवाल करतें हैं तुम फरमा दो वह गंदी चीज़ है, तो हैज़ में औरतों से बचो और उनसे कुर्बत(हम बिस्तरी) न करो जब तक पाक न हो लें, तो जब पाक हो जाऐं उनके पास उस जगह से जाओ जिसका अल्लाह ने तुम्हे हुक्म दिया बेशक अल्लाह दोस्त रखता है तौबा करने वालों को और दोस्त रखता है पाक होने वालों को !"_

*📖हदीस-::* _उम्मुल मोमिनीन आइशा सिद्दिका रदियल्लाहु तआला अन्हा फरमाती हैं कि हम हज के लिऐ निकले जब सरिफ(मक्का शरीफ के करीब एक जगह का नाम) में पहुँचे तो मुझे हैज आया तो मैं रो रही थी ! कि हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम मेरे पास तशरिफ लाऐ फरमाया कि तुझे क्या हुआ, क्या तुझे हैज आया ? अर्ज़ की हाँ! फरमाया कि ये एक ऐसी चीज़ जिसको अल्लाह तआला ने आदम की लड़कियों के लिए लिख दिया है ! तु खाना ए काबा के तवाफ के सिवा सब कुछ अदा करे जिसे हज करने वाला करता है ! और फरमाया कि हुजूर ने अपनी बीवियों की तरफ से गाय की कुर्बानी की !_
*📚(बहारे शरीयत, हिस्सा 2, सफा 66)*

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*⤵औरतों के मसाइल/हैज़ का बयान*

*पोस्ट नम्बर-: 2*

*📖हदीस-::* बुखारी और मुस्लिम में उन्ही से रिवायत है वह फरमाती हैं कि हैज़ की हालत में होती और हुज़ूर मेरी गोद में तकिया लगाकर कुरआन पढ़ते !
*📚(बुखारी शरीफ)*

*📜हदीस-::* उन्ही से रिवायत है वह फरमाती हैं कि हुज़ूर ने मुझसे फरमाया कि हाथ बढ़ा कर मस्जिद से मुसल्ला उठा देना ! मैने अर्ज किया मैं हैज़ की हालत में हूं ! हुजूर ने फरमाया तेरा हैज़ तेरे हाथ में नही !
*📚(मुस्लिम शरीफ)*

*📜हदीस-::* उम्मुल मोमिनीन मैमूना रदियल्लाहु तआला अन्हा से मरवी है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम एक चादर मे नमाज़ पढ़ते थे जिसका कुछ हिस्सा मुझ पर था और कुछ हुज़ूर पर और मैं हैज़ की हालत में थी !
*📚(मुस्लिम शरीफ)*
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*हैज़ की हिकमत*

✨बालिगा औरत के बदन मे फितरी तौर पर जरूरत से ज्यादा खून पैदा होता है कि हमल की हालत में वह खुन बच्चे की गिजा में काम आये और बच्चे के दुध पीने के ज़माने में वही खुन दुध हो जाऐ ! और ऐसा न हो तो हमल और दुध पीलाने के ज़माने में उसकी जान पर बन जाऐ ! यही वजह है कि हमल और शीरख्वारी की इब्तेदा में खुन नही आता और जिस जमाने न हमल और न दुध पीलाना वह खुन बदन से न निकले तो किस्म किस्म की बीमारियाँ पैदा हो जाऐ !
*📚(बहारे शरीअत, हिस्सा 2, सफ़ा 67)*

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*⤵औरतों के मसाइल/हैज़ का बयान*

*पोस्ट नम्बर-:3*

*हैज के मसाइल*

*📄मसअला नं. 1:-* बालिग़ा औरत के आगे के मकाम से जो खून आदत के तौर पर निकलता है और बीमारी या बच्चा पैदा होने की वजह से न हो तो उसे "हैज" कहतें  हैं, बीमारी से हो तो इस्तिहाज़ा और बच्चा पैदा होने के बाद हो तो "निफास" कहतें हैं!

*📄मसअला नं. 2:-* हैज़ की मुद्दत कम से कम तीन दिन रातें यानी पुरे 72 घंटे से अगर एक मिनट भी कम है तो हैज़ नही और ज़्यादा से ज़्यादा दस दिन दस रातें हैं!

*📄मसअला नं. 3:-* यह जरूरी नहीं की मुद्दत में हर वक्त खुन जारी रहे तभी हैज़ हो बल्कि अगर किसी वक्त भी आऐ तब भी हैज़ है !

*📄मसअला नं. 4:-* कम से कम 9 बरस की उम्र से हैज़ शुरू होगा और आखिरी उम्र हैज़ आने की 55 साल है इस उम्र वाली औरत को "आइसा" और इस उम्र को "सिने अयास" कहतें हैं !

*📄मसअला नं. 5:-* नौ बरस की उम्र से पहले जो खून आऐ इस्तिहाज़ा है यूँ ही पचपन साल की उम्र के बाद जो खून आऐ इस्तिहाज़ा है, अगर पिछली सुरत में अगर खालिस खून आऐ या जैसा पहले आता था उसी रंग का आया तो हैज़ है !
*📚(बहारे शरीअत, हिस्सा 2, सफ़ा 67, 68)*
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*पोस्ट नम्बर-:4*

*हैज के मसाइल*

*📄मसअला नं. 6:-* हमल वाली के जो खून आया इस्तिहाज़ा है, ऐसे ही बच्चा होते वक्त जो खून आया और अभी आधे से ज्यादा बच्चा बाहर नही निकला, अब इस्तिहाज़ा है !

*📄मसअला नं. 7:-* दो हैजों के बीच कम से कम पुरे पन्द्रह दिन का फासला जरूरी है ऐसे ही निफास और हैज़ के दरमियान भी पन्द्रह दिन का फासला ज़रूरी है तो अगर निफास खत्म होने के बाद पन्द्रह दिन पूरे न हुऐ थे कि खून आया तो यह इस्तिहाज़ा है !

*📄मसअला नं. 8:-* हैज़ उस वक्त से शुमार किया जाऐगा कि खून फर्ज(शर्मगाह) से बाहर आ गया तो अगर कोई कपड़ा रख लिया है जिसकी वजह से फर्ज से बाहर नही आया और अन्दर ही रूका रहा तो जब तक कपडा न निकालेगी वह हैज़ वाली न होगी, नमाज़ पढेगी और रोजा रखेगी !

*📄मसअला नं. 9:-* हैज़ के 6 रंग है~
काला
पीला
हरा
लाल
गदला
मटीला और सफेद रंग की रतूबत हैज़ नहीं !

*📄मसअला नं. 10:-* गद्दीजब तर थी तो उसमें ज़र्दी(पीलापन) या मैलापन था सूख जाने के बाद सफेद हो गई तो हैज़ की मुद्दत में हैज़ ही है और अगर जब देखा था सफेद थी सूख कर पीली हो गई तो यह हैज़ नहीं !
*📚(बहारे शरीअत, हिस्सा 2, सफ़ा 68, 69)*

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*⤵औरतों के मसाइल/हैज़ का बयान*

*पोस्ट नम्बर-:5*

*हैज के मसाइल*

*📄मसअला नं. 11:-* जिसकी एक आदत मुकर्रर न हो कभी छः दिन हैज के हों और कभी सात दिन और अब जो खून आया तो बन्द होता ही नहीं तो उसके लिऐ नमाज़ रोज़े के हक़ मे कम मुद्दत यानी छः दिन हैज के करार दिये जाऐंगे और सातवे रोज नहा कर नमाज़ पढ़े और रोजे रखे मगर सात दिन पूरे होने के फिर नहाने का हुक्म है और सातवें दिन जो फर्ज रोजा रखा है उसकी कज़ा करे और इद्दत गुज़ारने या शौहर के पास रहने के बारे में ज़्यादा मुद्दत यानी 7 दिन हैज के माने जाऐंगे यानी सातवे दिन उससे हमबिस्तरी जाईज़ !

*📄मसअला नं. 12:-* किसी को एक दो दिन खून आकर बन्द हो गया और दस दिन पूरे न हुऐ कि फिर खून आया और दसवें दिन बन्द हो गया तो यह दसों दिन हैज़ के हैं और अगर दस दिन के बाद भी जारी रहा तो अगर आदत पहले की मालूम हो तो आदत के दिनों में हैज़ है और बाकी इस्तिहाज़ा नहीं तो दस दिन हैज़ के और बाकी इस्तिहाज़ा !
*📚(बहारे शरीअत, हिस्सा 2, सफ़ा 71)*
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*⤵औरतों के मसाइल/हैज़ का बयान*

*पोस्ट नम्बर-:6*

*हैज व निफास के मुतअल्लिक़ अहकाम*

*📄मसअला:-* हैज़ और निफास वाली औरत को कुरान मजीद देखकर या जबानी पढ़ना और उसका छुना अगर्चे उसकी जिल्द या चोली या हाशिए को हाथ या उंगली की नोक या बदन का कोई हिस्सा लगे सब हराम है !

*📄मसअला:-* काग़ज़ के पर्चे पर कोई सुरह या आयत लिखी हो तो उसका भी छुना हराम है !

*📄मसअला:-* जुज़दान में कुरान मजीद हो तो उस जुज़दान के छुने में हर्ज़ नहीं !

*📄मसअला:-* मुअल्लिमा को हैज़ या निफास हुआ तो एक एक कलिमा सांस तोड़ तोड़ कर पढ़ाऐ और हिज्जे कराने में हर्ज़ नहीं !

*📄मसअला:-* ऐसी औरत को अज़ानका जवाब देना जाईज है !

*📄मसअला:-* ऐसी औरत को मस्जिद में जाना हराम है !

*📄मसअला:-* ईदगाह के अन्दर जाने में कोई हर्ज़ नहीं !

*📄मसअला:-* हाथ बढ़ा कर कोई चीज़ मस्जिद से लेना जाईज है !

*📄मसअला:-* नमाज़ का आखिर वक्त हो गया और अभी तक नमाज़ नही पढ़ी कि हैज़ आया या बच्चा पैदा हुआ तो उस वक्त की नमाज़ मुआफ़ हो गई, अगर्चे इतना तंग वक्त हो गया हो कि उस नमाज़ की गुन्जाइश न हो !

*📄मसअला:-* नमाज़ पढ़ने में हैज़ आ गया या बच्चा पैदा हुआ तो नमाज़ मुआफ़ है अलबत्ता अगर नफ्ल नमाज़ थी तो कज़ा वाजिब है !
*📚(बहारे शरीअत, हिस्सा 2, सफ़ा 74)*
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*पोस्ट नम्बर-:7*

*हैज व निफास के मुतअल्लिक़ अहकाम*

*📄मसअला:-* जिस औरत को तीन दिन रात के बाद हैज़ बन्द हो गया और आदत के दिन अभी पूरे न हुऐ या निफास का खून आदत पूरी होने से पहले बन्द हो गया तो बन्द होने के बाद ही गुस्ल करके नमाज़ पढ़ना शुरू कर दे और आदत के के दिनों का इन्तजार न करे !

*📄मसअला:-* आदत के दिनों से खून आगे बढ़ गया तो हैज़ में दस और निफास में चालीस दिन तक इन्तजार करे, अगर इस मुद्दत के अन्दर बन्द हो गया तो अब से नहा धोकर नमाज़ पढे और जो इस मुद्दत के बाद भी जारी रहा तो नहाऐ और आदत के बाद बाकी दिनों की कज़ा करे !

*📄मसअला:-* हैज़ या निफास आदत के दिन पुरे होने से पहले बन्द हो गया तो आखिर मुस्तहब वक्त तक इन्तिजार करके नहा कर नमाज़ पढ़े और जो आदत के दिन पुरे हो चुके हों तो इन्तिजार की कोई जरूरत नही !

*📄मसअला:-* रोजे की हालत में हैज़ या निफास शुरू हो गया तो वह रोजा जाता रहा उसकी कज़ा रखे अगर रोजा फर्ज था तो कज़ा फर्ज और नफ्ल था तो कज़ा वाजिब है!
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*पोस्ट नम्बर-:8*

*📄मसअला:-* अगर सोते वक्त औरत पाक थी और सुबह को सोकर उठी तो हैज़ का असर देखा तो उसी वक्त से हैज का हुक्म दिया जाऐगा और इशा की नमाज़ नहीं पढ़ी थी तो पाक होने पर उसकी कज़ा फर्ज है !

*📄मसअला:-* इस हालत में सोहबत हमबिस्तरी हराम है !

*📄मसअला:-* अगर साथ सोने में शहवत के ज्यादा होने और अपने को काबू में न रख सकने का खतरा हो तो साथ न सोये और अगर ग़ालिब ग़ुमान हो तो साथ सोना गुनाह है !

*📄मसअला:-* निफास में औरत का जच्चाखाने से निकलना जाइज़ है ! उसको साथ खिलाना उसका झूठा खाने में कोई हर्ज़ नही ! हिन्दूस्ताने में कुछ जगह उनके बरतन अलग रख देती और उनके बरतन को नापाक बरतन की तरह समझती हैं यह गलत है यह हिन्दूओं की ऐसी बेहूदा रस्म है इससे बचना चाहिए ! अक्सर औरतों में यह रिवाज़ है कि जब तक चिल्ला पूरा न हो ले अगर्चे निफास खत्म हो लिया हो न नमाज़ पढे न अपने आपको नमाज़ के काबिल समझे यह सरासर जिहालत है !
*📚(बहारे शरीअत, हिस्सा 2, सफ़ा 75, 76)*
*➡खत्म...*

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