✍️करीना-ए-जिन्दगी

بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
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      📕 करीना -ए-जिन्दगी 📕

     ✍🏻       भाग-0⃣1⃣
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          कुदरत ने हर नर (male) के लिए मादा (female) और हर मादा के लिए नर पैदा फरमा कर बहुत से जोड़े आ़लम में बनाए और हर के बदन के मशीन पर मुख्तलिफ़ पुर्जों को इस अंदाज के साथ सजाया की वोह हर इक की फ़ितरत के मुताबिक़ एक दूसरे को फायदा पहुँचाने वाले और जरूरत को पूरा करने वाले हैं।


        अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने मर्द और औरत को एक दूसरे के ज़रिये सुकून हासिल करने की ख्वाहिश रखी है ।  चुनान्चे मज़हबे इस्लाम ने इस ख्वाहिश का एहतिराम करते हुए हमें निकाह करने का तरीका़ बताया ताकि इंसान जाइज़ तरीकों से सुकून हासिल कर सकें।


       इस जमाने में अक्सर मर्द निकाह के बाद ला इल्मी और मज़हब से दूर रहने की वजह से तरह तरह की गलती करते हैं। और नुकसान उठाते है इन नुकसानात से उसी वक्त  बचा सकता है। जब के इसके मुत्अल्लिक सही इल्म हो अफसोस इस जमाने में लोग किसी आ़लिमे दीन या जानकार  शख्स से मियाँ, बीवी के खास तआल्लुकात के मुत्अल्लिक पूछने या माअलूमात हासिल करने से कतराते हैं। हालाँकि दीन की बातें और शरई मसाइल माअलूम करने में कोई शर्म महसूस नहीं करनी चाहिए।


   
हमारा रब अज़्ज़ व जल्ला इर्शाद फरमाता है।

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👉🏻  तो अए लोगों इल्म वालों से पूछो अगर इल्म न हो।


📕 (तर्ज़ुमा कन्जुल इमान पारा १७ सूरए "अम्बिया" आयत नं ७)



हमारे आक़ा ﷺ इर्शाद फ़रमाते है।

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👉🏻 इल्मे [दीन] सीखना हर मुसलमान मर्द औरत पर फर्ज है।


📕  (मिश्क़ात शरीफ जिल्द १, सफा नं ६८, कीम्या -ए- सआ़दत सफा नं १२७)


 अक्सर देखा येह गया है के लोग मियाँ बीवी के दरमियान होने वाली खास चीज़ो के बारे में पूछने में शर्म महसूस करते हैं। और इसे बेहूदापन और बेशर्म समझते हैं। यही वह शर्म और झिझक है जो गलतियों का सबब बनते हैं। और फिर सिवाय नुकसान के  कुछ  हाथ नही आता है।


         एक साहब मुझसे कहने लगे । "क्या यह शर्म की बात नहीं ? के आपने एसी किताब लिखी है। जिसमें सोहबत के बारे में  साफ़ साफ़ खुले अनदाज़ में बयान किया गया है। अगर मैं यह किताब अपने घर पर रखूँ  तो वह मेरी माँ,बहनो के हाथ में लग जाएँ तो वोह मेरे मुत्अल्लिक किया सोचेंगे कि मे कैसी गन्दी किताब पढ़ता हूँ। उनकी बात सुनकर मुझे उनकी कम अक़्ली पर अफ़सोस हुआ। मैंने उनसे सवाल किया-क्या आपके घर टीवी (t.v.)है ? कहने लगे_ _"हाँ है" मैंने कहा ।  मुझे आप बताइए "जब आप एक साथ इक ही क़मरे में अपने माँ,बहन के साथ टीवी पर फिल्म देखते हैं। और उसमें वोह सब देखते हैं। जो अपनी माँ बहनों के साथ तो क्या अकेले भी देख़ना ज़ायज़ नही तो उस वक्त आपको शर्म क्यों नहीं आती" !!


    मेरे प्यारे भाईयों शरई रोशनी  में अ़दब के दाइरे मे ऐसी माअ़लूमात हासिल करना और उसे बयान करना ज़रूरी है। और इसमें किसी किस्म की शर्म व बेहूदापन नही है।_


  देखो हमारा अल्लाह अज़्ज़ व ज़ल्ला किया इर्शाद फरमाता है।---

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👉🏻 तर्ज़ुमा :-  और अल्लाह हक़ फ़रमाने में नही शर्माता।


📕 [तर्जुमा :- कन्जुल इमान पारा २२, सूरए अहज़ाब, आयात ५३, ]


       हदीसो में है कि हुज़ूरे अकरम  ﷺ के  जाहिरी जमाने में  औरतें तक आज्दवाज़ी [शादी शुदा ज़िन्दगी में] आने वाले मसाइल के बारे में हुज़ूर ﷺ से पूछा करती थी।


      उम्मुलमोमेनीन हज़रत आइशा सिद्दीक़ा  [रदीअल्लाहो तआ़ला अन्हु] इर्शाद फरमाती है।

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 👉🏻 अन्सारी [मदीने मुनव्वराह की औरतें] क्या खूब है । के उन्हें दीन समझने में हया [शर्म] नही रोकती"। [यानी वोह दीनी बातें माअ़लूम करने में नहीं शर्माती]


📕 (बुख़ारी शरीफ,जिल्द १, सफा नं १५०, इब्ने माज़ा जिल्द १, सफा नं २०२]


    मअ़लूम हुआ। के दीन सीखने मे किसी किस्म की हया [शर्म] नहीं करनी चाहिए। अगर यह बात [मियाँ बीवी के दरमियान होने वाली चीजें] बेहूदा या गन्दी होती तो उसे हमारे आक़ा व मौला ﷺ क्यों बयान फरमाते और फिर सहाब-ए-किराम, आइम्म-ए-दीन, बुजुर्गाने दीन, लोगों तक इसे क्यों पहुँचाते? और इन बातों को अपनी किताबों में क्यों लिखते। क्या कोई शर्म व हया में हमारे आक़ा व मौला ﷺ से ज्यादा हो सकता है।



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    "यकीनन नही"।


 हमारा अक़ीदह  है। के सरकार ने बिला झिझक वोह तमाम चीज़े हमें साफ़ साफ़ बयान फरमा दिया जिस के करने से हमारी ही ज़ात को नुकसान है। [अल्लहमदुलिल्लाह]


📮 जारी है....

✍🏻  मुसन्नीफ -मुहम्मद फारुख खान अशरफी रजवी साहब, और हिंदी पोस्ट महमुद आलम कादरी साहब बाराबंकी लखनऊ उ.प्र. की वेब से लि गयी है!
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मुझे अपनी और सारी दुनिया के मुसलमान की इस्लाह करनी है।
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طالِبِ دُعا محفلِ غُلاماٰنِ مُصطٰفی ﷺ

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      📕 करीना -ए-जिन्दगी 📕

     ✍🏻 .....भाग-0⃣2⃣

             [जरा इसे भी पढ़िए]
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[आयत :--]अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त इरशाद फरमाता है!----

👉🏻 तर्जुमा :- तो निकाह मे लाओ जो औरतें तुम्हें खुश आए!


[तर्जुमा कन्जुल इमान पारा 4, सूरए निसा, आयात नं 3]

✍🏻  [हदीस :-].... नूरे मुजस्सम, रसूले खुदा, हबीबे किब्रिया, नबी-ए-रहमत, शाफ-ए-महशर, फख़रे दो आलम, फख़रे बनी -ए-आदम, मालिके दो जहाँ, ख़ातमुल अम्बिया, ताजदारे मदीना राहते कल्बो सीना, जनाबे अहमदे मुज़्तबा, मुहम्मद मुस्तफा ﷺ ने इरशाद फरमाया-------

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👉🏻 निकाह मेरी सुन्नत है!

📚 [इब्ने माज़ा जिल्द 1, हदीस नं 1913, सफा नं 518,]


📚 [हदीस :-]....और इरसाद फरमाते है हमारे मद़नी आक़ा ﷺ-------


👉🏻 "बन्दे ने जब निकाह कर लिया तो आधा दीन मुक़म्मल हो जाता है। अब बाकी आधे के लिए अल्लाह तआला से डरे" ।


📕 [मिश्कात शरीफ जिल्द 2, हदीस नं 2962, सफा नं 72,]

📚 [हदीस :-]....हज़रत सहल बिन सअ़द [रदिअल्लाहो तआला अन्हे] से रिवायत है। कि नबी-ए-करीम ﷺ ने इरसाद फरमाया-----


👉🏻 "निकाह करो चाहे [महेर देने क लिए ] एक लोहे की अँगूठी ही हो ।"


📕 [बुखारी शरीफ जिल्द 3, हदीस नं 136, सफा नं 80,]
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📚  [हदीस :-].... हज़रत अब्दुल्ला बिन मसऊद [रदिअल्लाहो तआला अन्हो] से रिवायत है। सरकार ﷺ ने इरशाद फरमाया------_
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👉🏻  "एे ज़वानो तुम मे से जो औरतों के हुक़ूक़ [हको़ को] अदा करने की ताक़त रखता हो तो वोह निकाह जरूर करे। क्यों कि यह निगाह को झुक़ाता और शर्मगाह की हिफ़ाज़त करता है जो इसकी ताक़त न रखे वोह रोज़ा रखे क्यों कि यह शहवत [वासना sex] को कम करता है।"

📕 [बुखारी शरीफ जिल्द 3, सफा नं 52, तिर्मिज़ी शरीफ जिल्द 1, सफा नं 553,]

✍🏻 [मसअला :-].... शहवत का गल़्बा [ज़वानी का जोश] ज़्यादा है और मआजअल्लाह अंदेशा है की जिना (निकाह किये बिना किसी भी शादीशुदा या गैर शादी शुदा औरतो से नाजायज शारीरीक सबंध बनाना या जबरदस्ती किसी भी औरत को वासना का शिकार बनाना) हो जाएंगा! और बीवी का महेर व ख़र्चा वगै़रह दे सकता है तो निकाह करना वाज़िब है। यु ही जब की अजनबी औरत की तरफ निगाह उठने से रोक नही सकता या माआजअल्लाह! हाथ से काम लेना पडेगा  (हस्तमैथुन किया तो भी गुनाह मे मुब्तीला होंगा) तो निकाह करना वाजीब है!

✍🏻  [मसअला :-]....   यह यक़ीन है कि निकाह नही करेगा तो ज़िना वाके हो जाएगा तो ऐसी हालत मे  निकाह करना फ़र्ज़  है।

✍🏻  [मसअला]....अगर यह अंदेशा (डर) है कि निकाह करेंगा तो बीवी का महेर, खर्चा वगैरह नही दे सकेंगा तो एसी हालत मे निकाह करना मक़रूह है।

✍🏻 [मसअला].... यक़ीन है कि महेर और खर्चा दे ही नही सकेगा तो ऐसी हालत में निकाह करना हराम है।

📕 [बहारे शरीअ़त जिल्द 2, हिस्सा 7, सफा नं 6, (Android-software करीना-ए-जिंदगी) क़ानूने शरीअ़त जिल्द 2, सफा नं 44,]

✍🏻 बाकी अगले पोस्ट में....

📮 जारी है...
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✍🏻  मुसन्नीफ -मुहम्मद फारुख खान अशरफी रजवी साहब नागपुर, और हिंदी पोस्ट महमुद आलम कादरी साहब बाराबंकी लखनऊ उ.प्र. की वेब से लि गयी है!
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            📕 करीना -ए-जिन्दगी 📕

               ✍🏻 .....भाग-0⃣3⃣

                 [जरा इसे भी पढ़िए]
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       [किन लोगों से निकाह ज़ायज़ नही]
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 ✍🏻 .... दुनिया में इन्सान के वज़ूद को बाकी रख़ने के लिए क़ानूने खुदा के मुताबिक़ दो गै़र जिन्स [ Different sex, मर्द और औरत ] का आपस में मिलना ज़रूरी है लेकिन उसी खु़दा के कानून के मुताबिक़ कुछ ऐसे भीे इन्सान होते है। जिनका जिन्सी तौर पर मिलना कानूने खुदा के ख़िलाफ़ है।

✍🏻 [आयात :-].... चुनान्चे हमारा और सबका  ख़ुदा अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त इरशाद फरमाता है।
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👉🏻 तर्जुमा :-  हराम हुई तुम पर तुम्हारी माँऐ, और बेटियाँ, और बहनें, और फूफियाँ, और खालाऐं, और भतीज़ियाँ, और भांज़ियाँ, और तुम्हारी माँऐ जिन्होंने दूध पिलाया और दूध की बहनें,और औरतों की माँऐ।------

📕 [तर्जुमा ए कुरआन कन्जुल इमान, पारा 4, सूर ए निसा, आयात नं 23]

...... क़ुरआने करीम की इस आयात से मअ़लूम हुआ  कि माँ, बेटी, बहन, फुफी, ख़ाला, भतीज़ी, भांजी, दादी, नानी, पोती, नवासी, सगी सास, वगैरह से निकाह करना हराम है।

✍🏻 [मसअला :-].... माँ सगी हो या सौतेली, बेटी सगी हो या सौतेली, बहन सगी हो या सौतेली, इन सब से निकाह करना हराम है। इसी तरह दादी, परदादी, नानी, परनानी, पोती, परपोती, नवासी, परनवासी, बीच में चाहे कितनी ही पुस्तों [पीढ़ियों ] का फासला हो, इन सब से निकाह करना हराम है।

✍🏻 [मसअला :-]....  फूफी, फूफी की फूफी, खाला, खाला की खाला, भतीज़ी, भान्ज़ी, भतीज़ी की लड़की, उसकी नवासी, पोती, इसी तरह भान्ज़ी की लड़की, उसकी पोती, नवासी, इन सब से भी निकाह करना हराम है।

📕 [बहारे शरीअ़त जिल्द 2, हिस्सा 7, सफा नं 23, (Android software) कानूने शरीअ़त जिल्द 2, सफा नं 47,]

📚 [हदीस :-]... हज़रत अमरा बिन्त अ़ब्दुर्रहमान व मौला अली [रदिअल्लाहो तआला अन्हुमा ] से रिवायत है। कि नबी-ए-करीम ﷺ  ने इरशाद फरमाया-----
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💫  "रज़ाअ़त [ दूध के रिश्तों] से भी वही रिश्ते हराम हो जाते हैं जो विलादत से हराम हो जाते हैं।

📕 [बुखारी शरीफ जिल्द 3, सफा नं 62, तिर्मिज़ी शरीफ जिल्द 1, सफा नं 587,]

           ....  यानी किसी औरत का दूध बचपन के आलम मे पिया हो तो उस औरत से माँ का रिश्ता हो जाता है। अब उसकी बेटी, बहन है उससे निकाह हराम है। यानी जिस तरह सगी माँ के जिस रिश्तेदारों से निकाह करना हराम है। उसी तरह उस दूध पिलाने वाली के रिश्तेदारों से भी निकाह करना हराम है।

✍🏻 [मसअला :-].... निकाह हराम होने के लिए ढ़ाई बरस का ज़माना है कोई औरत किसी बच्चे को ढाई बरस के अन्दर अगर दूध पिलाएगी तो निकाह हराम होना साबित हो जाएगा। और अगर ढाई बरस की उमर के बाद पिया तो निकाह हराम नही । अगर्चे बच्चे को ढाई बरस के बाद दूध पिलाना हराम है।

📕 [बहारे शरीअ़त जिल्द 2, हिस्सा नं 7, सफा नं 37, (Android software), कानूने शरीअ़त जिल्द 2, सफा नं 50, ]

✍🏻 [हदीस :-].... हज़रत अबूहुरैरा [रदिअल्लाहो तआला अन्हो ] से रिवायत है। कि रसूलुल्लाह ﷺ  ने इरशाद फरमाया----
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💫 "कोई शख्स अपनी बीवी के साथ उसकी भतीज़ी, या भान्जी से निकाह न करे "

📕 [बुखारी शरीफ जिल्द 3, हदीस नं 98, सफा नं 66, ]

          .... औरत [ बीवी ] की बहन, चाहे सगी हो या रज़ाई [यानी दूध के रिश्ते से बहन हो ] या बीवी की खाला, फूफी, चाहे रज़ाई फूफी या खाला हो इन सब से निकाह करना हराम है।

[हदीस :-].... हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास [ रदिअल्लाहो तआला अन्हुमा ] से इमाम बुखारी [ रदिअल्लाहो तआला अन्हो ] नेे रिवायत किया है-----

📕 [बुखारी शरीफ जिल्द 3, बाब नं 54, सफा नं 48, ]
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  [ क़ाफ़िर मुश्'रिक से निकाह ]
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✍🏻 [आयत :-].... अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त इरशाद फरमाता है।-----
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 💫 [तर्जुमा :-]....  "और मुश'रिको के निकाह में न दो जब तक वोह ईमान न लाए।

📕 [ तर्जुमा कुरआन कन्जुल इमान पारा 2, सूरए बखरा, आयात नं 221, ]

✍🏻 [ मसअला :- ].... मुसलमान  औरत का निकाह मुसलमान मर्द के सिवा किसी भी मज़हब वाले से नहीं हो सकता।

📕 [ कानूने शरीअ़त जिल्द 2, सफा नं 49, ]

 [आयत :-].... अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त इरशाद फरमाता है-----
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💫 तर्जुमा :-....  और शिर्क वाली औरतों से निकाह न करो जब तक मुसलमान न हो जाए।

📕 [तर्जुमा कुरआन कन्जुल इमान पारा 2, सूर ए बखरा, आयात नं 221, ]

✍🏻 [मसअ़ला :-].... मुसलमान का आग की पूज़ा करने वाली,  बुत [मूर्ती] पूज़ने वाली, सूरज़ की पूज़ा करने वाली, सितारों को पूज़ने वाली, इन मे से किसी से निकाह नहीं होगा।

📕 [ बहारे शरीअ़त जिल्द 2, हिस्सा नं 7, सफा

नं 32,(Android software), ]

                ...... आज के इस दौर में अक्सर हमारे मुस्लिम नौजवान क़ाफ़िर मुश'रिक़ [बुत पूज़ने वाली, गैर मुस्लीम ] औरतों से निकाह करते हैं। और निकाह के बाद उन्हें मुसलमान बनाते है। यह बहुत गल़त तरीका है और शरीअ़त में हराम है। अव्वल तो निकाह ही नही होता क्यों कि निकाह के वक्त तो लड़की मुसलमान न थी! काफ़िर मज़हब पर थी।
   
        याद रखिए क़ाफ़िर मुश'रिक़ औरत से मुसलमान करके शादी करना जायज जरूर है लेकिन येह कोई फ़र्ज़ या वाज़िब  नही है। बल्कि हुज़ूर ﷺ ने इसे पसंद भी नही फरमाया इसकी बहुत सी वज़ूहात उलमा -ए- किराम ने बयान फ़रमायी है जिसमें से चन्द ये है।
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✍🏻 1.... जिस औरत से आपने शादी की वोह तो मुसलमान हो गयी मगर उसके सारे मैक़े वाले क़ाफ़िर ही है और अब चूँकि वह आपकी औरत के रिश्तेदार है। इसलिए वोह उनसे तआ़ल्लुक़ रखती है।

✍🏻 2.... औरत के नव मुसलमान होने की वजह से औलादौ की तरबियत ख़ालिस इस्लामी ढंग से नहीं हो पाती

✍🏻 3.... अगर मुसलमान मर्द क़ाफ़िर औरतों से निकाह करेंगे तो मुसलमान औरत को ज़्यादा दिनो तक कुँवारा रहना पड़ेगा और मुसलमानों में मर्दो की क़िल्लत होगी तब जब औरतें ज़्यादा होगी।

✍🏻 4.... दीने इस्लाम में मुश्'रिकाना रस्म का रिवाज़ बढ़ेगा।
      ....इस तरह की कई बातें हैं जो यहां बयान करना मुमकिन नही - बेहतर यही है कि क़ाफ़िर व  मुश'रिक़ औरतो से निकाह न करे इस से दीन व दुनिया का बड़ा नुकसान है।  इसलिए अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने जहाँ मुश'रिक़ औरत से मुसलमान करके निकाह की इज़ाज़त दी वहीं मो'मिन लवंड़ी [ गुलाम लड़की ] से निकाह को ज्यादा बेहतर बताया । ब निस्बत इसके कि का़फ़िर व मुश'रिक़ औरत से निकाह किया जाए।

✍🏻 मसअ़ला.... जिसमे मर्द व औरत दोनों की अलामतें पायी जाए और यह साबित न हो कि मर्द है या औरत उससे न मर्द का निकाह हो सकता है न औरत का अगर किया गया बातिल [ झूठा ] है

📕 [बहारे शरीअ़त जिल्द 2, हिस्सा नं 7, सफा नं 5,(Android software), ]

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✍🏻 बाकी अगले पोस्ट में..

📮 जारी है...
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✍🏻  मुसन्नीफ -मुहम्मद फारुख खान अशरफी रजवी साहब, नागपुर महाराष्ट्र और हिंदी पोस्ट महमुद आलम कादरी साहब बाराबंकी लखनऊ उ.प्र. की वेब से लि गयी है!
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        📕 करीना -ए-जिन्दगी 📕

             ✍🏻 .....भाग-0⃣4⃣

              [जरा इसे भी पढ़िए]
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        [ क्या वहाबियों से निकाह करें? ]
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        ... वहाबियों से निकाह करने के मुताअ़ल्लिक इमाम इश्क़ो मुहब्बत मुजद्दिदे दीन व मिल्लत अज़ीमुल बरक़त आला हज़रत अश्शाह इमाम अहमद रज़ा खाँ [ रदिअल्लाहो तआला अन्हो ] अपनी "मलफ़ूज़ात" मे इरशाद फरमाते है।------

✍🏻 [इरशाद :-].... सुन्नी मर्द या औरत का शिया, वहाबी, देवबन्दी, नेचरी, कादयानी, जितने भी दीन से फिरे लोग है उनकी औरत या मर्द से निकाह नहीं होगा। अगर निकाह किया तो निकाह न हो कर सिर्फ़ ज़िना होगा। और औलाद ज़ायज़ न होकर नाज़ायज़ व हरामी कहलाएगी फ़तावा-ए-आलमगीरी मे है-----
لا یجوز النکاح المرتد
مع مسلمة ولا كافرة اصلية ولا مرتدة وكذالایجوز نكاح المرتدة مع احد--

☝☝ अगर कहीं  लिखने मे गल़ती [mistake] हो तो जरूर बताऐं

📕 [ अ़लमलफ़ूज़ जिल्द नं 2, सफा नं 105, ]

          ....अक्सर हमारे कुछ कम अक़्ल- न समझ सुन्नी मुसलमान जिन्हें दीन की माअ़लूमात व ईमान की अ़हमियत माअ़लूम नही होती वोह वहाबियों से आपस में रिश्ते जोड़ते है। कुछ बदनसीब सब जानने के बावजूद वहाबियों से आपस में रिश्ता करते हैं!
     
         .......कुछ सुन्नी हज़रात ख्याल करते हैं। कि वहाबी अ़क़ीदे की लड़की अपने घर ब्याह कर ला लो। फिर वोह हमारे माहौल में रहकर खुद ब खुद सुन्नी हो जाएगी अव्वल तो यह निकाह ही नही होता क्यों कि जिस वक्त यह निकाह हुआ उस वक्त तक लड़का सुन्नी और लड़की वहाबी अ़क़ीदे पर क़ायम थी। लिहाजा सिरे से ही येह निकाह ही नही हुआ

        सैंकड़ो जगह तो येह देखा गया है कि किसी सुन्नी ने वहाबी घराने मे येह सोचकर रिश्ता किया कि हम समझा बुझा कर हम अपने माहौल में रखकर वहाबी से सुन्नी बना लेंगे लेकिन वह समझा कर सुन्नी बना पाते इससे पहले ही उस वहाबी रिश्तेदारों ने उन्हें कुछ ज़्यादा ही समझा दिया और अपना हम ख़्याल बनाकर सुन्नी से वहाबी बना डाला [ अल्लाह की पनाह ] सारी होश़ियारी धरी की धरी रह गयी और दीन व दुनिया दोनों बर्बाद हो गये

    .... यह बात हमेशा याद रखिए एक ऐसे शख्स को समझाया जा सकता है तो वहाबियों के बारे में हक़ीक़त से वाकिफ न हो लेकिन ऐसे शख्स को समझा पाना मुम्क़िन ही नही जो सबकुछ जानता और समझता है। औलमा -ए- देवबन्द [ वहाबियों ] की हुज़ूरﷺ अम्बिया-ए-किराम, बुजुरगाने दीन, की शाने अ़क्दस में गुस्ताख़ियों को समझता है। उनकी किताबों में येह सब गुस्ताख़ाना बातों को पढ़ता है लेकिन इस सबके बावजूद येह कहता है कि येह [ वहाबी ]  तो बहुत अच्छे लोग हैं इन्हें बुरा नहीं कहना चाहिए। ऐसे लोगों को समझा पाना हमारे बस में नहीं।

✍🏻 [आयत :-].... अल्लाह तआला---ऐसे लोगों के मुत्अ़ल्लिक़ इरशाद फरमाता है-----
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👉🏻 तर्जुमा :-....  अल्लाह ने उनके दिलों पर और कानो पर मुहर कर दी और उनकी आँखों पर  घटा टूप है और उनके लिए बड़ा अज़ाब़ है

📕 [ तर्जुमा :- कन्जुल इमान पारा 1, सूरह ए बखरा, आयत नं 7,]

           .... लिहाजा जरूरी व अहम फर्ज है कि ऐसे लोगों से जिनके दिलों पर अल्लाह ने मोहर [ seal छाप ] लगा दी हो उनसे रिश्ता न क़ायम करें वर्ना शादी शादी न होकर ज़िना रह जाएगी।
   
    अल्हमदुलिल्लाह आज दुनिया में सुन्नी लड़कियों और लड़कों की कोई कमी नहीं है। और इन्शा अल्लाह तआला अहले सुन्नत व ज़माअत के मानने वाले क़यामत तक बड़ी तादाद में शानो शौक़त केसाथ क़ायम रहेंगे
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✍🏻 बाकी अगले पोस्ट में...

📮 जारी है...
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✍🏻  मुसन्नीफ -मुहम्मद फारुख खान अशरफी रजवी साहब, नागपुर महाराष्ट्र और हिंदी पोस्ट महमुद आलम कादरी साहब बाराबंकी लखनऊ उ.प्र. की वेब से लि गयी है!
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طالِبِ دُعا محفلِ غُلاماٰنِ مُصطٰفی ﷺ

بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
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           📕 करीना -ए-जिन्दगी 📕

               ✍🏻 .....भाग-0⃣5⃣

                [जरा इसे भी पढ़िए]
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📚 [हदीस :-]....हज़रत अब्दुल्ला इब्ने उमर [ रदिअल्लाहो तआला अन्हो ] से रिवायत है कि सरकार मद़ीनाﷺ ने गै़ब की खबर देते हुए इरशाद फरमाया------
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📚       "बेशक कौमे बनी इस्राईल  [हज़रत मूसा अलेहिस्सलाम की क़ौम ] बहत्तर [ 72 ] फ़िरक़ों में बट गयी और मेरी उम्मत  तिहत्तर [ 73 ] फ़िरक़ों में बट जाएगी सब के सब ज़हन्नमी होंगे सिर्फ़ एक फ़िरक़ा जन्नती होगा । सहाब-ए-किराम, ने अर्ज किया--वोह  जन्नती फ़िरक़ा कौन सा होगा ।

✍ ....  हुजुर ﷺ ने इरशाद फरमाया--
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    ...."जो मेरे और मेरे सहाबा के तरीके़ पर चलेगा।"

📕 [ तिर्मिज़ी शरीफ जिल्द 2, सफा नं 89,]
             ....अल्हमदुलिल्लाह ! बेशक वह जन्नती फ़िरक़ा अहले सुन्नत वल ज़माअ़त के सिवा कोई नही ! क्यों कि हम सुन्नी अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त व हुज़ूरे अकरम ﷺ  के मरतबे व अ़ज़मत के और बुजुरगाने दीन की शान व इज़्ज़त के काएल हैं।
           ....हम सुन्नियों का अ़क़ीदा है कि यह तमाम फ़िरक़े जैसे----- शिया, वहाबी, तबलीगी, देवबन्दी, मौदूदी, कादयानी, नेचरी, चक़डालवी,  सबके सब गुमराह, बद दीन, क़ाफ़िर, और दीन से फिरे  हुए मुनाफ़िक़ है।
            .....अब ज़्यादा तर लोग सुन्नी, वहाबी, के इस इख़्तिलाफ़ को चन्द मौलवीयों का झगड़ा समझते हैं। या फिर फातिहा, उर्स, नियाज़ का झगड़ा समझते हैं येह उनकी बहुत बड़ी गल़त फहमी है।

 ....खुदा की क़सम सुन्नियों का वहाबियों से सिर्फ़ इन बातों पर इख़्तिलाफ़ नहीं है। बल्कि हम अहले सुन्नत का वहाबियों से सिर्फ़ इस बात पर सबसे बड़ा बुनियादी इख़्तिलाफ़ है। कि इन वहाबियों के उलमा व पेशवा ने अपनी किताबों में अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त व हुज़ूर अकरम ﷺ और अम्बिया ए किराम, सहाब-ए-किराम, व बुजुरगाने दीन की शाने अ़कदस मे गुस्ताख़ियां लिखी है और उनकी अ़ज़मत व शान से खेला उन्हें बिद़अ़ती, क़ाफ़िर, व बेदीन, बताया [ माज़अल्लाह ] और मौजूदा वहाबी ऐसे ही ज़ाहिल उलामा को अपना बुज़ुर्ग व पेशवा मानते हैं। और उन्हीं की तआ़लीमात  व अकाईद ए बातील को दुनिया भर में फैलाते फिरते हैं। या कम अज कम उन्हे मुसलमान समझते है!

💎   [आयत :-].... अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त इरशाद फरमाता है।
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💎 तर्जुमा :-... जिस दिन हम हर ज़माअत को उसके इमाम के साथ बुलाएगे ।

📕 [तर्जुमा :- कन्जुल इमान पारा 15, सूरए बनी इस्राईल़, आयत नं 71,]

     अब हम आप लोगों के सामने इन लोगों के अक़ाएद [ faith ] उन्हीं की किताबों से पेश कर रहे हैं। जिसे पढ़कर आप खुद ही फ़ैसला़ कीजिए कि क्या ऐसी बातें कहने वाले यह लोग मुसलमान कहलाने का हक रखते है?  फैसला आप के हाथ में है।

             [ क्या यह मुसलमान है ]
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            ....वहाबी ज़माअत का बहुत बड़ा आलिम  "मौलवी इस्माईल देहलवी" अपनी किताब [ तक्वियतुल ईमान ] में लिखता है------

✍🏻 (1).... जो कोई (किसी बुज़ुर्ग की)  नियाज़ करे, किसी बुजुर्ग को अल्लाह की बारगाह  में सिफारिश करने वाला समझे तो यह शिर्क है! और  वह शख्स और " अबूज़हल" शिर्क में बराबर हैं। [ माज़अल्लाह ]

📕 [ तक्वियतुल ईमान, सफा नं 20,]

✍🏻 (2)....  यकीन जान लेना चाहीये की हर मख़लूक ख्वाह छोटी हो या बडी [ जैसे अम्बिया, फिरिश्ते, औलिया, उलामा, आम मुसलमान] अल्लाह की शान के आगे चमार से भी ज़्यादा ज़लील है। [माज़अल्लाह ]

📕 [ तक्वियतुल ईमान, सफा नं 30, ]


✍🏻 (3).... अल्लाह के मकर (मक्कारी) से डरना चाहीए की , धोके से डरना चाहिए कि अल्लाह बन्दो से मक्कारी भी करता है। [ माज़अल्लाह ]

📕 [ तक्वियतुल ईमान, सफा नं 76, ]

✍🏻 (4).... तमाम नबी और खुद हुज़ूरﷺ अल्लाह के बेबस बन्दे है और हमारे बड़े भाई  है। [माज़अल्लाह]

📕 [तक्वियतुल ईमान, सफा नं 99,]

✍🏻 (5).... हुज़ूर अकरमﷺ मर कर मिट्टी में मिल गए। [माज़अल्लाह]

📕 [तक्वियतुल ईमान, सफा नं 100, प्रकाशक :- दारूस्सालाफिया मुम्बई, ]

✍🏻 बाकी अगले पोस्ट में...
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✍🏻 बाकी अगले पोस्ट में...

📮  जारी है...
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✍🏻  मुसन्नीफ -मुहम्मद फारुख खान अशरफी रजवी साहब, नागपुर, महाराष्ट्र और हिंदी पोस्ट महमुद आलम कादरी साहब बाराबंकी लखनऊ उ.प्र. की वेब से लि गयी है!
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طالِبِ دُعا محفلِ غُلاماٰنِ مُصطٰفی ﷺ

بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
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      📕  करीना -ए-जिन्दगी 📕

                ✍🏻 .....भाग-0⃣6⃣

                 [जरा इसे भी पढ़िए]
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                  🔵              🔵

              [ क्या यह मुसलमान है। ]
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        ....यही मौलवी इस्माईल देहलवी अपनी एक दूसरी किताब "सिराते मुस्तक़ीम" में लिखता है------

✍🏻 (1)....नमाज़ में हुज़ूर अकरम ﷺ का ख़्याल लाना अपने गधे और बैल के ख़्याल में डूब जाने से बदतर है। [ माज़अल्लाह ]

📕 [ सिराते मुस्तक़ीम, सफा नं 119, प्रकाशक :- इदाराहे अलरशीद, देवबन्द जिला सहारनपुर ]

       ....वहाबियों के एक दूसरे आलिम जिन्हें वहाबी हज़रत हुज्जतुल इस्लाम कहते नहीं थकते जनाब "मौलवी कासिम नानोतवी"  है जिसकोो मदरसा देवबन्द  का बानी बतीया जाता है। अपनी एक किताब "तहजीरून्नास" में लिखते हैं।

 ✍🏻    (1).... बिल-फर्ज हुज़ूरﷺ के बाद भी कोई नबी आ जाए तो भी हुज़ूर के ख़ात्मियत [ हुज़ूर के आख़िरी नबी होने ] मे कोई फर्क न आएगा। [ माज़अल्लाह ]

📕 [ तहज़ीरून्नास, सफा नं 14, मत्बुआ मक्तबा फैज जामा मस्जीद देवबंद यु.पी.]

✍🏻   (2)....उम्मती अ़मल मे अंबीया से बजाहीर बराबर हो जाते है और बसा औकात बढ भी जाते है! [ माज़अल्लाह ]

📕 [ तहज़ीरून्नास, सफा नं 5, प्रकाशक :- मक़तब-ए-फै़ज़, जामा मस्जिद, देवबन्द, यू-पी ]

....वहाबियों के नक़ली मुजद्दिद मौलवी "रशीद अहमद गंगोही" अपनी किताब में अपना ख़बीस अ़कीदह बयान करते हुए लिखते हैं।

✍🏻 (1)....जो सहाब-ए-किराम, को क़ाफ़िर कहे वोह सुन्नत ज़माअत से खारिज नही होगा। [ यानी सहाब-ए-किराम, को क़ाफ़िर कहने वाला मुसलमान ही रहेगा। ] [ माज़अल्लाह ]

📕 [ फ़तावा-ए-रशीदीया जिल्द नं 2, सफा नं 11, ]

✍🏻    (2).... मोहर्रम में इमामे हुसैन [ रदि अल्लाहु तआला  अन्हो ] की शहाद़त का बयान करना , सबील लगाना, शरबत पिलाना ऐसे कामों में चन्दा देना येह सब हराम है। [ माज़अल्लाह ]

📕 [ फ़तावा-ए-रशीदीया, जिल्द नं 2, सफा नं 114, प्रकाशक :- मक़तब-ए-थानवी, देवबन्दी, यू पी ]

         ....इन्हीं रशीद अहमद गंगौही के शागिर्द और वहाबियों के बड़े इमाम "मौलवी खलील अहमद अम्बेठी" ने अपने उस्ताद "गंगौही" की इज़ाज़त और देख रेख में "बराहिनुल कातिअ़" नामी एक किताब लिखी आइये देखिए उसमें  उन्होंने किया गुल खिलाया है।----

✍🏻 (1)....हुज़ूर अकरम ﷺ से ज़्यादा इल्म शैतान को है। शैतान को ज़्यादा इल्म होना क़ुरआन से साबित है जबकि हुज़ूर का इल्म क़ुरआन से साबित नहीं है। जो शैतान से ज़्यादा इल्म हुज़ूर का बताए वोह मुश'रिक़ [ बुतो की पूज़ा करने वाला क़ाफ़िर ] है। [ माज़अल्लाह ]

📕 [ बराहिनुल कातिअ़, सफा नं 55, ]

✍🏻     (2)....अल्लाह तआला झूठ बोलता है। [यानी अल्लाह झूठा है।] [माज़अल्लाह]

📕 [ बराहिनुल कातिअ़, सफा नं 273, ]

 ✍🏻 (3).... हुज़ूर अकरमﷺ का मीलाद [ईदे मिलादुन्नबी ] मनाना कन्हैया [ हिन्दूओ के देव ] के जन्मदिन मनाने की तरह है। बल्कि उससे भी ज़्यादा बदतर है। [ माज़अल्लाह ]

📕 [ बराहिनुल कातिअ़, सफा नं 152, ]

✍🏻       (4).... हुज़ूर ﷺ ने उर्दू ज़बान मदरसा-ए-देवबन्द में आकर उलमा-ए-देवबन्द से सीख़ी  [ माज़अल्लाह ]

📕 [बराहिनुल कातिअ़, सफा नं 30, ]

✍🏻 (5).... हुज़ूरﷺ को दीवार के पीछे का भी इल्म नहीं । [ माज़अल्लाह ]

📕 [बराहिनुल कातिअ़, सफा नं 55, प्रकाशक :- "कुतुब खाना इमदादिया" देवबन्द यू पी ]

               ....यह है "मौलवी अशरफ अली थानवी" जो वहाबियों के हकीमुल उम्मत है और वहाबियों के नजदीक इनके पैर धोकर पीने से नज़ात मिलती है। यह साहब अपनी किताब में लिखते हैं।------

✍🏻 (1)....नबी-ए-करीम ﷺ को जो इल्मे गै़ब है इसमें हुज़ूरﷺ का क्या कमाल ऐसा इल्मे गै़ब तो हर किसी को हर बच्चे व पागलों बल्कि तमाम जानवरों को भी हासिल है। [ माज़अल्लाह ]

📕              [ हिफ़जुल इमान, सफा नं 8, प्रकाशक :- दारूल किताब, देवबन्द यू पी ]

✍🏻 (2).... इन्हीं  थानवी साहब की एक किताब "रिसाला-ए-अलइम्दाद" मे है कि------
                .....इनके एक मुरीद ने कलमा पढ़ा "ला इलाहा इल्लल्लाह अशरफ अली रसूलुल्लाह" [ माज़अल्लाह ] और अपने पीर अशरफ अली थानवी से पूछा कि " मेरा यह कलमा पढ़ना कैसा है" ?

       इसके जवाब में थानवी साहब ने कहा----- तुम्हारा ऐसा कहना ज़ायज़ है तुम इसके लिए परेशान न हो तुम अगर इस तरह का कलमा पढ़ रहे हो तो सिर्फ़ इस वजह से के तुम्हें मुझ से मुहब्बत है। लिहाजा तुम्हारा ऐसे कलमा पढ़ने में कोई हर्ज नहीं । [ माज़अल्लाह ]

📕 [ रिसाल-ए-इम्दाद, सफा नं 45, ]

               .....थानवी साहब की एक और फ़तवे की किताब "बहेशती ज़ेवर"  में है। कि-------
        हाथ में कोई न

ज़िस [ ना पाक़ ] चीज़ [ पेशाब, आदमी का, जानवर का, पाखाना वगैरह ] लग जाए तो किसी ने जबान से तीन (3) मर्तबा चाट लिया तो पाक़ हो जाएगा। मगर चांटना  मना है! [ माज़अल्लाह ]

📕 [ बहेशती ज़ेवर, जिल्द नं, 2 सफा नं 18, ]

👉🏻 येह है जनाब "मौलवी इल्यास कानदहलवी" जो तबलीग़ी ज़माअत के बानी [ Founder ] है। इनका कहना है कि-----
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✍🏻 (1).... अल्लाह तआला अगर किसी से काम लेना नहीं चाहते तो चाहे तमाम अंबीया (नबी) भी कितनी कोशिश कर ले तब भी ज़र्रा नही हिल सकता और अगर लेना चाहें तो तुम जैसे जईफ से भी वह  काम ले ले जो अंबीया (नबियों) से भी न हो सके। [ माज़अल्लाह ]

📕 [ मक़ातिबे इल्यास, सफा नं 107, प्रकाशक :- इदारहे इशाअ़ते दीनियात नई दिल्ली। ]

👉🏻          यह है जनाब "मौलवी अबूआला मौदूदी" जिन्होंने  जमाअ़ते-इस्लामी नाम की एक नई जमाअ़त क़ायम की थी। आज इस जमाअ़त की कई ज़ायज़ व ना ज़ायज़ औलादें S-I-M S-I-O के नाम से वज़ूद में आ चुकी है। जो मौदूदी ताअ़लीमात को फैला रही है इनके नजदीक मौदूदी ही सबकुछ है चुनान्चे इन्हें मौदूदी साहब हुक़्म देते हैं।
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✍🏻    (1)....तुम को खुदा की मरज़ी के मुताबिक ज़िन्दगी बसर करने का तरीक़ा नही माअ़लूम----- अब तुम्हारा फर्ज है। कि खुदा के सच्चेे पैग़म्बर की तलाश करो इस तलाश मे तुमको निहायत  होश़ियारी और समझ बुझ  से काम लेना चाहीये! क्यो के अगर किसी गलत आदमी को तुमने पैगंबर समझ लिया तो वह तुम्हे गलत रास्ते पर  लगा देंगा! मगर जब तुम्हे खुब जॉंच पडताल करने के बाद यह यकीन हो जाए के  फ़लां शख्स खुदा का सच्चा पैग़म्बर है तो उस पर तुम्हें पूरा भरोसा करना चाहिए। और उसके हर हुक़्म की इताअ़त करनी चाहिए। [ माज़अल्लाह ]

(मुख्तसर यह के मौदुदी साहब के नजदिक इस दौर मे भी खुदा का सच्चा पैगंबर तलाश करने की जरूरत है और यह तलाश फर्ज है)

📕 [ रिसाल-ए-दीनियात, सफा नं 47, प्रकाशक :- मरक़जी मक़तबा इस्लामी, दिल्ली, ]

👉🏻 यही मौदूदी साहब अपनी दूसरी किताब में लिखते हैं।----
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✍🏻 (2)....जो लोग हाज़ते माँगने अजमेर [ ख़्वाज़ा ग़रीब नवाज़ की मजार पर ] या फिर सैय्यद़ सैय्यद़ सालार मसऊद गाज़ी की मजार पर या ऐसे ही दुसरे मकामात पर जाते हैं। वोह इतना बड़ा गुनाह करते हैं। कि कत्ल  और जिना भी उस से कमतर [ कम ] है। [ माज़अल्लाह ]

📕 [ तजदीदो इहया-ए-दीन, सफा नं 96 प्रकाशक :-  मरक़जी मक़तबा इस्लामी, नई दिल्ली ]

👉🏻 यही अबूआला मौदूदी अपनी एक और किताब में अपनी यह ही आला दर्ज़े की बक़वास लिखते हैं। कि-----
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✍🏻 (3)....सब जगह अल्लाह के रसूल अल्लाह की किताब लेकर आए और बहुत मुम्क़िन है। कि बुध, कृष्ण, राम, मानी, सुकरात, फ़िसा, गोरस, वगैरह इन्हीं रसूलो में से हो । [ माज़अल्लाह ]

📕 [  तफहीमात, जिल्द नं 1, सफा नं 124, प्रकाशक :- मरक़जी मक़तबा इस्लामी, नई दिल्ली, ]

👉🏻 वहाबियों के पीरो के पीर "महमूदुल हसन" ने अपनी एक किताब में लिख मारा कि-----
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✍🏻 (1).... झूठ, ज़ुल्म व तमाम बुराइयां [ जैसे चोरी, जहालत, ज़ुल्म, गी़बत, ज़िना, वगैरा ] करना अल्लाह के लिए कोई  ऐब नही, और न इन कामों के करने की वजह से उस की ज़ात में कोई नुकसान आ सकता है। [ माज़अल्लाह ]

📕 [ जहदुलमक़्ल, जिल्द नं 3, सफा नं 77, ]

     [ हमारा ऐलान Our Challenge ]
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✍🏻..हमने यहां जितने भी वहाबी जमाअ़त से मुत्अ़ल्लिक़ हवाले पेश किए है। वोह सब उन्हीं के उलमा की किताबों से नक़ल किये है। याद रहे येह किताबें आज भी छप रही है। और इनके मदरसो  व क़ुतुब ख़ानो [ बुक स्टॉलो ] पर आसानी से मिल जाती है।
             .... हमारा आ़म ऐलान [ challenge ] है। कि अगर कोई साहब इन बातों को या हवालों मे से किसी एक हवाले को गल़त साब़ित कर दे। तो उसे  रुपये [50,000] नगद दिए जाएंगे
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✍🏻 बाकी अगले पोस्ट में...

📮 जारी है...
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✍🏻  मुसन्नीफ -मुहम्मद फारुख खान अशरफी रजवी साहब,नागपुर महाराष्ट्र और हिंदी पोस्ट महमुद आलम कादरी साहब बाराबंकी लखनऊ उ.प्र. की वेब से लि गयी है!
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اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
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            📕 करीना -ए-जिन्दगी 📕

              ✍🏻  .....भाग-0⃣7⃣

               [जरा इसे भी पढ़िए]
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[आयत :- ].... हमारा रब जल्ला जलालहु इरशाद फरमाता है। कि------
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💎 तर्जुमा :-....तुम फ़रमाओ के अपनी दलील लाओ  अगर तुम सच्चे हो।

📕 [ तर्जुमा :- कन्जुल इमान, सूरए नम्ल, पारा 20, रूकू 1, आयत नं 64, ]

✍🏻 [ आयत :-]....और एक दूसरी जगह इरशाद फरमाता है। कि-----
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💎 तर्जुमा :-.... जब सुबूत ना ला सके तो अल्लाह के नज़दीक वही झूठे हैं।

📕 [ तर्जुमा :- कुरआने करीम, सूरए नूर, पारा 18, रूकू 8, आयत नं 13, ]

            वहाबियों के यही वोह अक़ाएद [ faith ] है जिनकी वजह से ओलमा-ए-हरमैन तय्यबैन [ मक्का-ए-मुअ़ज़्ज़मा, व मद़ीना शरीफ के ] और दुनिया के तमाम ओलमा-ए-दीन ने वहाबियों को क़ाफ़िर, गुमराह, बद्'दीन, मुरतद, [ दीन से फिरे हुए ] और मुनाफ़िक़ करार दिया।------

✍🏻 ....उलमा-ए-किराम इन लोगों के बारे में फरमाते है।---
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📚 "जो इन [ वहाबियों ] के क़ाफ़िर होने मे और इनके अ़ज़ाब में शक करे वोह खुद भी क़ाफ़िर है"।---

📕 [ हस्सामुल हरमैन, ]

✍🏻 [ हदीस :-].... हज़रत अबूह़ुरैरा, हज़रत अनस बिन मालिक, हज़रत अब्दुल्लाह बिन ऊमर, व हज़रत जाबिर [रदिअल्लाहो तआला अन्हो ] रिवायत करते हैं। कि हुज़ूरे अक़दसﷺ  ने इरशाद फरमाया----
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👉🏻 "अगर बद़ मज़हब, बेदीन, मुनाफ़िक़ बीमार पड़े तो उनको पूछने  न जाओ, और अगर वोह मर जाए तो उनके ज़नाज़े पर न जाओ, उनको सलाम न करो, उनके पास न बैठो, उनके साथ न खाओ न पियो, --- न ही उनके साथ शादी करो--- न उनके साथ नमाज़ पढ़ो,"

📕 [ मुस्लिम शरीफ, अबूूदाऊद शरीफ, व इब्ने माज़ा शरीफ, मिश्क़ात शरीफ, ]

📚  [हदीस :-].... हज़रत इब्ने अ़दी [ रदिअल्लाहो तआला अन्हो ]  हज़रत मौला अली [रदिअल्लाहो तआला अन्हो] से रिवायत करते है कि हुज़ूर अकरम ﷺ ने इरशाद फरमाया------
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📚  जो मेरी इज़्ज़त न करे और मेरे अन्सारी सहाबा और अ़रब के मुसलमानो का हक़ न पहचाने वोह तीन हाल से खाली नहीं,
            (1)या तो मुनाफ़िक़ है,
            (2)या हराम की औलाद,
            (3) या हैज़ [ माहवारी ] की
                 हालत में जना हुआ।

📕 [  बयहक़ी शरीफ, बहवाला इसअ़तुल अ़दब लफ़ाज़िलिन्नसब, सफा नं 46, अज :- आला हज़रत, ]

 📕 [हदीस :-]....हज़रत इकरेमा [ रदिअल्लाहो तआला अन्हो ] रिवायत करते हैं।  हज़रत मौला अली [ रदिअल्लाहो तआला अन्हो ] की ख़िदमत में कुछ बद'दीन, गुस्ताख़, पेश किए गएे तो आपने उन्हें ज़िन्दा जला दिया जब यह खबर इब्ने अब्बास [ रदिअल्लाहो तआला अन्हो ] को पहुँची तो उन्होंने ने फरमाया--

                  के अगर मै होता तो उन्हें न जलाता क्योंकि रसूलुल्लाह ﷺ ने किसी को जलाने से मना फरमाया है बल्कि उन्हें कत्ल करता कि रसूलुल्लाह ﷺ  ने इरशाद फरमाया----- "जो अपना दीने इस्लाम तब्दील करे उसे कत्ल कर दो"।

📕 [ बुखारी शरीफ, जिल्द 3, हदीस नं 1814, सफा नं 658, ]

💎 [ आयत :-]....अल्लाह जल्ला जलालहु इरशाद फरमाता है-----
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💎  तर्जुमा :-.... ऐ गै़ब की ख़बर देने वाले [ नबी ] जिहाद [ जंग ] फ़रमाओ क़ाफ़िरो, और मुनाफ़िक़ो पर और सख़्ती करो।

📕 [ तर्जुमा :- कन्जुल इमान, सूरए तौबा, पारा 10, आयत नं 73, ]

[आयत :-].... अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त इरशाद फरमाता है-----
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💎 तर्जुमा :-....और तुम मे से जो कोई उनसे दोस्ती करे वोह उन्हीं मे से है।

📕 [ तर्जुमा :- कन्जुल इमान, पारा 6, सूरए माएदह, आयत नं 51, ]

              🔵 ज़रा सोचिए 🔵
 
      अब भी क्या कोई ग़ैरतमन्द इन्सान अपनी बेटी ऐसे क़ाफ़िरो, मुनाफ़िक़ो के यहाँ ब्याहना पसंद करेगा ?।

          अब भी क्या कोई ग़ुलामे रसूल इन गुस्ताख़ वहाबियों की लड़कियाँ अपने घर लाना गंवारा करेगा?।
         
  ...अब भी क्या कोई आशिके़ नबी अपने नबी के इन गुस्ताख़ो से रिश्ता जोड़ना चाहेगा?।
         
          हमारा यह सवाल उन लोगों से है। जिनमें ग़ैरत का ज़रा सा भी हिस्सा बाकी है जिन्हें दौलत से ज़्यादा अल्लाह व रसूल की खुशी प्यारी है। और रहे वोह लोग जो किसी दुनियावी लालच या हुस्न व जमामाल या फिर माल व दौलत से मुतास्सिर [ Impres ] होकर वहाबियों से रिश्ता बनाए हुए है या रिश्तेदारी  करना चाहते हैं तो उनके मुत्अ़ल्लिक़ ज़्यादा कुछ कहना फ़ुजूल है। वोह अपनी इस हवस व लालच मे जितनी दूर जाना चाहें चले जाए अब इस्लाम का कोई कानून,  शरीअ़त की कोई दफअ़, कोई ज़न्जीर उनके इस उठे हुए क़दम को नही रोक सकती।  लेकिन हाँ ! हाँ याद रहे यक़ीनन एक दिन अल्लाह और

उसके रसूल को मुँह दिखाना है।
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✍🏻 बाकी अगले पोस्ट में...

📮 जारी है...
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✍🏻  मुसन्नीफ -मुहम्मद फारुख खान अशरफी रजवी साहब, नागपुर, महाराष्ट्र और हिंदी पोस्ट महमुद आलम कादरी साहब बाराबंकी लखनऊ उ.प्र. की वेब से लि गयी है!
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طالِبِ دُعا محفلِ غُلاماٰنِ مُصطٰفی ﷺ

بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
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              📕 करीना -ए-जिन्दगी 📕

                  ✍🏻 .....भाग-0⃣8⃣

                [जरा इसे भी पढ़िए]
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                  🔵              🔵

                 [ निकाह कहाँ करें ]
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📚 [ हदीस :-]....उम्मुलमोमेनीन हज़रत आएशा सिद्दीक़ा, हज़रत अनस बिन मालिक, हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने ऊमर [ रदिअल्लाहो तआला अन्हा ] से रिवायत है। कि हुज़ूर अक़दस ﷺ ने इरशाद फरमाया-----
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📚  "अपने नुत्फे़ [ शादी के लिए ] अच्छी जगह तलाश करो, अपनी बिरादरी में ब्याह हो, और बिरादरी से ब्याह कर लाओ कि औरतें अपने ही कुन्बे [बिरादरी] के मुशाबा [मिलते हुए बच्चे पैदा करती है।]

📕 [ इब्ने माज़ा, जिल्द नं 1, हदीस नं 2038, सफा नं 549, बयहक़ी शरीफ़, व हाकिम, ]

 इस हदीसे पाक से पता चलता है कि अपनी ही बिरादरी में शादी करना बेहतर है। अपनी ही बिरादरी में निकाह करने के बहुत से फायदे हैं जैसे----

(1)औलाद अपनी बिरादरी के लोगों के चेहरे से मिलती जुलती पैदा होंगी जिस की वजह से दूसरे लोग देखते ही पहचान लेंगे कि यह सैय्यद है, यह पठान है, यह शैख है वगैरह।

 (2) दूसरा यह फ़ायदा है कि बिरादरी की गरीब लड़कियों की जल्द से जल्द शादी हो जाएगी, और शादी मे खर्च कम होंगे!

 (3) तीसरा फायदा यह है कि अपनी ही बिरादरी की लड़की हो तो वह  बिरादरी के तौर तरीके, घर के रहन सहन तहजीब व तमद्दुन से पहले से ही  जानकार होती है लिहाज़ा घर में झगड़े ना इत्तेफ़ाक़ियां का माहोल पैदा नही होगा!

 (4) चौथा फ़ायदा यह है कि बिरादरी की ऐसी लड़कियाँ जो देखने दिखाने में ज़्यादा खूबसूरत नहीं होती उनकी भी शादी हो जाएेगी । अक्सर देखा गया है कि लोग दूसरे बिरादरी की खूबसूरत लड़कियों को ब्याह कर लाते हैं। जब के उनके बिरादरी की बद सूरत लड़कियाँ कुंवारी रह जाती है और बहुत सी लड़कियों की जब शादी नही हो पाती तो वह किसी बदमाश, आवारा, मर्द के साथ भाग जाती है या फिर तरह तरह की बुराइयों में फँस जाती है यही वजह है कि बिरादरी में ही शादी करना बेहतर बताया गया।

📚 [ हदीस :-]....हज़रत इमाम बुखारी [ रदिअल्लाहो तआला अन्हो ] रिवायत करते हैं। कि------
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👉🏻  "और मुस्तहब [ अच्छा बेहतर ] है के अपनी नस्ल के बेहतर औ़रत चुने लेकिन यह वाज़िब नही" [ सिर्फ मुस्तहब  है ]

📕 [  बुखारी शरीफ, जिल्द नं 3, बाब नं 41, सफा नं 56, ]

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📚 [ हदीस :-]....हज़रत अनस [ रदि अल्लाहु तआला अन्हो ] से रिवायत है। कि नबी-ए-करीमﷺ ने इरशाद फरमाया-----
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👉🏻 "अच्छी नस्ल में शादी करो [रगे खुफ़या काम करती है ]"

📕 [ दारक़ुत्नी शरीफ, बहवाला इराअतुल अदब लेफ़ाज़िलिल नसब, सफा नं 26, अज़ :- आला हज़रत ]

📚 [ हदीस :-]...और फरमाते है आक़ा ﷺ ------
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📚 "घोड़े की हरयाली से बचो, बुरी नस्ल में खूबसूरत औरतों से,"

📕 [ दारक़ुत्नी शरीफ, बहवाला इराअतुल अ़दब लेफ़ाज़िलिल नसब, सफा नं 26, अज़ :- आला हज़रत ]

           लड़की का खूबसूरत होना ही काफ़ी नही बल्कि ख़ूबी तो येह है कि लड़की पर्दादार,  नमाज़ रोज़े की पाबंद हो, उसका खानदान  रहेन-सेहन, तहज़ीब व अख़्लाक, मे और ख़ास तौर पर मज़हबी अक़ाएद मे बेहतर हो  (बिल खुसुस सहीउल अकीदा सुन्नी हो) । अगर आपने यह सब चीजों को देख कर निकाह किया तो आप .की दुनिया व आख़िरत कामयाब है और आगे ऐसी लड़की के जरिए, फ़रमांबरदार, मज़हबी और दुनियावी ख़ूबियों वाली बेहतर नस्ल जन्म लेती है। चुनान्चे सरकारे दो आलमﷺ  ने हमें यही हुक़्म दिया है।

📚 [ हदीस :- ]....हज़रत अबूह़ुरैरा व हज़रत जाबिर [ रदिअल्लाहो तआला अन्हुम ] से रिवायत है। कि हुज़ूर अकरमﷺ ने इरशाद फरमाया-----
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       💎 "औरत से चार चीजों की वजह से निकाह किया जाता है। उसके दौलत, उसके खानदान, उसके हुस्न व ज़माल, और उसके दीनदार होने की वजह से, लेकिन तू दीनदार औरत को हासिल कर"!

📕 [ बुखारी शरीफ, जिल्द नं 3, सफा नं 59, तिर्मिज़ी शरीफ. जिल्द नं 1, सफा नं 555, ]
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📚 [ हदीस :-]....नबी-ए-करीम ﷺ ने इरशाद फरमाया-----
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      "औरतों से उनके हुस्न के सबब से शादी न करो हो सकता है उनका हुस्न तुम्हें तबाह कर दे, न उन से माल की वजह से शादी करो हो सकता है उनका माल तुम्हें गुनाहो मे मुब्तला न कर दे, बल्कि दीन की वजह से निकाह किया करो। काली चपटी, बदसूरत लौन्डी अगर दीनदार हो तो बेहतर है।"

📕 [ इब्ने माज़ा, जिल्द नं 1, हदीस नं 1926, सफा नं 522, ]

                इमाम ग़ज़ाली  [ रदि अल्लाहु तआला अन्हो ] इरशाद फरमाते है----
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           "अगर कोई औरत खूबसूरत तो है मगर दीनदार व परहेज़गार व पारसा नही तो बुरी बला है---

-बद मिज़ाज औरत, ना शुक्रगु़जार, और ज़बान दराज़ होती है और मर्द पर बेजा हुकूमत करती हैं, ऐसी औरत के साथ जिन्दगी बदमज़ा हो जाती है और दीन में ख़लल पड़ता है।"

📕 [ कीमीया-ए-सआ़दत, सफा नं 260, ]

         याद रखिये अगर आप ने सिर्फ ऐसी लड़की से निकाह किया जो माल व दौलत (जहेज) ख़ूब  साथ लाई और खूबसूरत भी बहुत थी लेकिन दीनदार नही और न ही तहज़ीब व इख़्लाक के मामले में बेहतर, तो आप उस के साथ यक़ीनन एक अच्छी और खु़शहाल जिन्दगी नहीं गुज़ार सकते, ऐसी लड़की की वजह से घर में हमेशा तनाव रहता है और आखिर कार माँ, बाप, से दूर होना पड़ जाता है इसलिए जहां आप खूबसूरती, माल व दौलत, को देखते है। इन सब से ज़्यादा जरूरी है कि आप उस का इख़्लाक, उस का खानदान और खास तौर से दीनदार है कि नही येह जरूर देखें, तभी आप कामयाब ज़िन्दगी के मालिक बन सकते हो।

            अगर  एक खूबसूरत लड़की में येह सब खूबियां नही और उसके उलट किसी बदसूरत लड़की में दीनदारी है तो वोह बदसूरत लड़की उस खूबसूरत लड़की से बेहतर है।
               अक्सर हमारे भाई दौलतमन्द, फै़शन प्रस्त  लड़की पर  मरते हैं और दौलत को बहुत अ़हमियत देते हैं जब के  दौलत से ज़्यादा दीनदारी को अ़हमियत देनी चाहिए।

📚 [ हदीस :- ]....हुज़ूर अकरमﷺ ने इरशाद फरमाया----
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💎 "जो कोई ज़माल (ख़ूबसूरती) या माल व दौलत की ख़ातिर किसी औरत से निकाह करेगा----तो वोह दोनों से मेहरूम रहेगा और जब दीन के लिए निकाह करेगा तो दोनों मकसद पूरे होंगे"

📕 [ कीम्या-ए-सआ़दत, सफा नं 260, ]

📚 [ हदीस :-]..और फरमाया रसूलुल्लाह ﷺ ने----
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💎 "औरत की तलब दीन के लिए ही करनी चाहिए जमाल (खूबसूरती) के लिए नही"।

                  इसके माना यह है कि सिर्फ़ खूबसूरती के लिए निकाह न करें। न यह कि खूबसूरती ढ़ून्डे़ ही नहीं, अगर निकाह करने से सिर्फ़ औलादें हासिल करना और सुन्नत पर अ़मल करना ही किसी शख़्स का मक़सद है खूबसूरती नहीं चाहता तो येह परहेज़गारी है।

📕 [ कीमीया-ए-सआ़दत, सफा नं 260, ]

💎 [ आयत :-]....अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त इरशाद फरमाता है----
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💎 तर्जुमा :-....अगर वह फक़ीर (गरीब) हो तो अल्लाह उन्हें ग़नी कर देगा। अपने फज़्ल के सबब

📕 [ तर्जुमा :- कन्जुल इमान, पारा 18, सूरए "नूर", आयत नं 32, ]

    लिहाजा अगर किसी लड़की में दीनदारी ज़्यादा हो चाहे वोह कितनी ही गरीब क्यों न हो उससे शादी करना बेहतर है क्या अज़ब के अल्लाह तआला उससे शादी करने की और उस की बरक़त से आप को भी दौलत से नवाज़ दे । आप को उस नेक व गरीब लड़की से वोह ही खुशी व सुकून मिल सकता है जो एक दौलतमन्द बद मिज़ाज, मार्डन (modern) फ़ैशन की परस्त लडकी से नही मिल सकता! हाँ अगर कोई  लडकी दौलतमन्द होने के साथ-साथ ही दीनदार, नेक सिरत, अच्छे अख़्लाक वाली हो, पर्दादार हो और  ऐसी  लडकी कोई शादी करे तो यह यकीनन बडी खुश नसीबी की बात है बेशक अल्लाह तआला माल व दौलत, व चेहरों को नही देखता बल्कि तक़वा व परहेज़गारी को देखता है।
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✍🏻 बाकी अगले पोस्ट में...

📮 जारी है...
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✍🏻           मुसन्नीफ मुहम्मद फारुख खान अशरफी रजवी साहब, नागपुर, महाराष्ट्र और हिंदी पोस्ट महमुद आलम कादरी साहब बाराबंकी लखनऊ उ.प्र. की वेब से लि गयी है!
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             📕 करीना -ए-जिन्दगी 📕

               ✍🏻 .....भाग-0⃣9⃣

              [जरा इसे भी पढ़िए!]
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       🔵 [ शादी के लिए इस्तेख़ारा ] 🔵
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       किसी नये काम को शुरु करने से पहले इस्तेख़ारा करना चाहिए, इस्तेखा़रा उस अमल को कहते है जिसके करने से ग़ैबी तौर पर यह माअ़लूम हो जाता है के फु़ंला काम करने मे फ़ायदा है या नुक़सान । अगर वह काम आपके लिये अच्छा है तो इस्तेखारा की बरकत से गैब से असबाब पैदा हो जाते है! और अगर वह काम आपके लिये बेहतर नही है तो कुदरती तौर पर इंसान इस काम से रुका रहता है!

         इस्तेखा़रा और "शगून" में बहुत फ़र्क़ है इस्तेखा़रा में किसी नये काम शुरू करने में अल्लाह से दुआ़ करना और उसकी मर्ज़ी माअ़लूम करना मक़सद होता है। जबकि शगून जादूगरो, छू- छा करने वाले, सितारों से, परिन्दो से, सिफ्ली इल्म जानने वालो से,  नुजूमीयो से  ज्योतिषीयों, वगै़रह , और इस तरह की दूसरी चीज़ों के जरिए लेते हैं।

        इसी तरह जादुगर, नुजुमी ज्योतिषी और सिफली इल्म जानने वालो के पास आगे पेश होने वाले हालात जानने के लिये जाना और उनकी बातो पर यकीन करना कुफ्र  है!

📚 [ हदीस :- ]....सरकारे मद़ीना ﷺ ने इरशाद फरमाया-----
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         जो किसी काहीन (भवीष्य बताने वाला) के पास जाए और उसकी बात सच्ची समझे तो वह काफीर हुआ उस चिज से जो मुहम्मद मुस्तफा ﷺ पर नाजील हुई!

📚 (अबु दाऊद शरीफ जिल्द नं ३, बाब नं २०३, हदिस नं ५०७)
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और फरमाते है नबी ए करीम ﷺ 

         जो किसी काहिन के पास जाए और उससे कोई गैब की बात पुछे, तो उसकी चालीस दिन तौबा कबुल ना हो! और काहीन की बात पर यकीन रखे तो काफीर हो गया!
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फतावा तारखानीया मे है!
     
         जो कहे मै छिपी हुई चिजो को जान लेता हू, या जिन्न के बताने से बता देता हु, तो वह काफीर है!

         इसी तरह शगुन लेना शरीयत ए इस्लामी मे शिर्क बताया गया है! शिर्क करने वाला हमेशा हमेशा जहन्नम मे रहेंगा!
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📚  हदिस....  हजरत इब्ने मसऊद रदिअल्लाहु तआला अन्हु ने रसुल ए करीम ﷺ का यह इरशाद बयान किया है!
   
     "शगुन लेना शिर्क है, शगुन लेना शिर्क है, अगरचे अक्सर लोग शगुन लेते है!

📚 (मिश्कात शरीफ, जिल्द नं २, हदिस नं ४३८०)
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"तबरानी" ने हजरत इब्ने उमर रदिअल्लाहु तआला अन्हु के हवाले से लिखा है!

       "शगुन लेना शिर्क शिर्क है, और यह अल्फाज तिन मरतबा अदा किये! फिर कहा  " सफर को जाने वाला किसी शगुन की वजह से लौट आए तो उसने हुजुर ﷺ पर नाजील शुदा अहकाम ए इलाही याने (कुरआन ए करीम) का इंकार किया!
(तबरानी शरीफ)
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    "रिवायत है के जो शख्स किसी शगुन की  रु (वजह) से अपना काम न कर सका तो यकीनन उसने शिर्क किया!

📚 (मा सबता बिसुन्नह फी अय्यामिन सुन्नह सफा नं ६३)
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     इस्तेखा़रा में किसी नये काम शुरू करने में अल्लाह से दुआ़ करना और उसकी मर्ज़ी माअ़लूम करना मक़सद होता है।  यह रसूलुल्लाह ﷺ, सहाबाए किराम और बुजु़र्गाने दीन का तरीक़ा है।
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📚 [ हदीस :- ].... हज़रत जाबिर बिन अब्दुल्लाह [ रदिअल्लाहु तआला अन्हु] रिवायत करते हैं।--------
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      रसूलुल्लाह ﷺ हमें हर काम में हमें इस्तेखा़रा की तलक़ीन फ़रमाते थे जैसे क़ुरआन की कोई सूरत सिखाते"

📕 [ बुखारी शरीफ, जिल्द 1, सफा नं 455, तिर्मिज़ी शरीफ, जिल्द 1, सफा नं 292, ] 
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📚 [ हदीस :- ] सरकारे मदिना ﷺ  ने इरशाद फरमाया ......

        "अल्लाह तआला ने इस्तेखा़रा करना औलादें आदम  [ इन्सानो ] की ख़ुशबख़्ती  है और इस्तेखा़रा न करना बद बख़्ती  है"।
   
       इस्तेखा़रा किसी भी नये काम को शुरू करने से पहले करना चाहिये जैसे नया कारोबार शुरू करना हो, नया मकान बनानाया ख़रीदना हो, किसी सफ़र पर जाना हो, या कोई नयी चीज़ ख़रीदना है, वगैरह  वगैरह  इन सब  में नुकसान होगा या फ़ायदा यह जानने के लिए इस्तेखा़रा का अ़मल किया जाना चाहिए।

....अब चूंकि शादी एक ऐसा काम है जिस पर सारी ज़िन्दगी के आराम व सुकून का दारोमदार है बीवी अगर नेक, परहेज़गार, मुहब्बत करने वाली, ख़ुशमिज़ाज होगी तो ज़िन्दगी ख़ुशियों से भरी होगी और आने वाली नस्ल भी एक बेहतर नस्ल साब़ित होंगी। लेकिन अगर बीवी बदमिज़ाज, बदक़ार, बेवफ़ा, हुई तो सारी ज़िन्दगी झगड़ो से भरी और सुकून से खाली होगी। यहाँ तक कि तलाक़ तक नौब

त पहुँच जाऐगी । लिहाजा जरूरी है कि शादी से पहले ही माअ़लूम कर लिया जाए के जिस औरत को अपनी शरीकेे जिन्दगी [ बीवी ] बनाना चाहता है। वोह दीन व दुनिया के एतेबार से बेहतर साबित होगी या नहीं।
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📚 [ हदीस :- ].... हज़रत इब्ने ऊमर व हज़रत सहल  बिन सअ़द [रदिअल्लाहो तआला अन्हुमा ] से रिवायत है कि हुज़ूरे अकरम ﷺ ने इरशाद फरमाया--------

   💫    "अगर नहुसत किसी चीज़ में है तो वह घर, औरत, और घोड़ा है [ यानी अगर दुनिया मे  कोई चीज़ मन्हूस होती तो यह हो सकती थी, लेकीन होती नही हैं ]

📕 [ मुस्नदे इमामे आ़ज़म बाब नं 121, सफा नं 211,मोता इमाम मालिक़, जिल्द नं 2, बाब नं 8, हदीस नं 21, सफा नं 207, बुखारी शरीफ, जिल्द नं 3, बाब नं 47, हदीस नं 86, सफा नं 61, तिर्मिज़ी शरीफ, जिल्द नं 2, बाब नं 327, हदीस नं 730, सफा नं 295, अबूूदाऊद शरीफ, जिल्द नं 3 बाब 206, हदीस नं 524, सफा नं 186,  नसाई शरीफ, जिल्द नं 2, सफा नं 538,  इब्ने माज़ा, जिल्द नं 1, बाब नं 643, हदीस नं 2064, सफा नं 555, मिश्क़ात शरीफ, जिल्द नं 2, हदीस नं 2953, सफा नं 70, मासबता बिस्सुन्ना,  सफा नं 70, ]
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👉🏻 इमाम तिर्मिज़ी [रदिअल्लाहो  तआला अन्हु ] इस हदिस के मुत्ताल्लीक इरशाद फरमाते है------

         यह हदीस हसन सही है هذا حديث حسن صحيح" यह हदीस अहादीस की और दीगर किताबों जैसे मुस्लिम शरीफ, मुस्नदे इमाम अहमद, तबरानी वगैरा में भी नक़्ल है। इस से पहले एडीशनो में हमने ये हदीस बुखारी के अ़ल्फाज़ मे नक़्ल की थी और हालाँकि अपनी तरफ से इस पर कोई तबसेरा भी नही किया था। लेकिन इस के बावजूद कुछ ना वाक़िफ़ो ने इस पर एतराज़ात किये थे। लिहाजा इस बार मज़ीद हवाले बढ़ा दिये गये है। अब भी अगर किसी साहब का हम पर इल्ज़ाम बाकी हो  तो वोह हमसे सही हवाले देख सकते हैं।

📚 [ शरह :- ]....  इमामे आ़ज़म अबू हनीफा [रदिअल्लाहो तआला अन्हो] इस हदीस की तशरीह में फरमाते है। कि-----
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      👉🏻 _*....* घर की नहुसत यह है कि वह तंग [छोटा] हो [और बुरे पड़ोसी हो]  घोड़े की नहुसत यह है के सरकश हो! औरत की नहुसत यह है के बद अख्लाख हो, हजरत इमाम हसन बिन सुफियान रदिअल्लाहु तआला अन्हु ने उसमे इजाफा किया और कहा की बद अख्लाख और बांज हो!

📕 [ मुस्नदे इमामे आ़ज़म, बाब नं 121, सफा नं 212,

✍🏻 [ शरह :- ].... इसी हदीस की शरह में आ़ला हज़रत इमाम अहले सुन्नत हजरत अहमद रज़ा ख़ाँन कादरी, महद्दीस बरेलवी  [रदिअल्लाहो तआला अन्हु] इरशाद फरमाते है। ------
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       💎 "शरीअ़त के मुताबिक़ नहूसत यह है कि घर तंग हो, पड़ोसी बुरे हो, और घोड़े की नहूसत यह है कि शरीर हो बद लगाम हो, बद रकाब हो, औरत की नहूसत यह है कि बदज़बान, बद अख़्लाक (जुहान दराज) हो, । और बाकी यह ख़्याल हो  के औरत के चेहरे से यह हुआ फु़ंला के चैहरे से यह हुआ , यह सब बातील (बकवास) है  और क़ाफ़िरों के ख़्याल है"

📕 [ फ़तावा ए रज़वीया, जिल्द नं 9, सफा नं 254, ]
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       अब आपने जान लिया के किसी शख्स के लिये कोई औरत नहुसत का सबब (यानी बद अख्लाख, और जुबान दराज) भी हो सकती है, और फित्ना भी! जाहीर है जो औरत बद अख्लाख, जुबान दराज, और फित्ना परवर हो तो तकलिफ व परेशानी का सबब होंगी! लिहाजा यह जानने के लिये की जिस लडकी से आप निकाह करना चाहते है वह आपके हक मे बेहतर साबीत होंगी या नही! सह सब जानने के लिये इस्तेखारा जरुर करे!
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✍🏻 बाकी अगले पोस्ट में...

📮 जारी है...
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✍🏻  मुसन्नीफ -मुहम्मद फारुख खान अशरफी रजवी साहब, नागपुर महाराष्ट्र और हिंदी पोस्ट महमुद आलम कादरी साहब बाराबंकी लखनऊ उ.प्र. की वेब से लि गयी है!
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طالِبِ دُعا عبدالباسط عبدالرحیم

بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
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            📕 करीना -ए-जिन्दगी 📕

             ✍🏻 ....भाग-1⃣0⃣

              [जरा इसे भी पढ़िए!]
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   🔵  [ इस्तेख़ारा करने का तरीका ] 🔵
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(1)  जिस से निकाह करने का इरादा हो तो पैग़ाम या मंगनी के बारे मे किसी से ज़िक्र न करें। अब रात को खूब अच्छी तरह वुज़ू कर के जितनी नफ्ल नमाज़े पढ़ सकता है दो दो रकाअत करके पढ़े । फिर नमाज़ ख़त्म करने के बाद खूब खूब अल्लाह की तस्बीह बयान करे। [जो भी तस्बीह याद हो ज़्यादा से ज़्यादा पढ़ें!] जैसे.. अल्लाहु अक़बर اللٰہ اکبر, सुब्हान अल्लाह سبحان اللہ, अल्हमदुलिल्लाह الحمداللہ, या रहेमान, या रहीम یا رحیم, या करीम یا کریم, वगैरह फिर उसके बाद यह दुआ़ खुलूस व दिल की गहराई से येह दुआ पढ़ें---------
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💎 दुआ :-....अल्लाहुम्मा इन्न-का-तक़दुरू वला अक़दरू व तअ़लमु वला आ़लमु व अन-ता-अल्लामुल गु़यूबी-फ-इन-रा-एै-ता-अन्ना फी [यहां लड़की का पूरा नाम ले ] खैरल ली फी दीनी व दुनया-या-व अाख़ेरती फ़क़ दिरू हाली व इन काना गै़रू-हा-ख़ैरम मिन-हा-फी दीनी व आ़खेरती फ़क़ दिर हाली ०

[ तर्जुमा :- ].... एे अल्लाह तू हर चीज़ पर क़ादिर है। और मै क़ादिर नही और तू सब कुछ जानता है मै कुछ नही जानता! बेशक तू गै़ब की बातों को खूब जानता है अगर [लड़की का नाम ले ] मेरे लिए मेरे दीन के एतेबार से, दुनिया व आ़ख़ेरत के एतेबार से बेहतर हो तो उस को मेरे लिए मुक़द्दर फरमा दे । (अगर वह मेरे लिये बेहतर ना हो तो) इसके अलावा और कोई लड़की या औरत मेरे हक़ में मेरे दीन व आ़ख़ेरत के एतेबार से उस से बेहतर हो तो उस को मेरे लिए मुक़द्दर फ़रमा दे।

📕 [ हिस्ने हसीन, सफा नं 160 ]
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      इस तरह इस्तेखा़रा करने से इन्शा अल्लाह तआला सात (7) दिनो मे ख़्वाब या फिर बेदारी मे ही अल्लाह की जानिब से कुछ ऐसा जा़हिर होगा या कुछ ऐसा वाके होंगा जिससे आपको अंदाज़ा हो जाऐगा के उस लड़की या औरत से निकाह करने में बेहतरी है या नहीं

   (2) कुछ उलमा-ए-किराम ने इस्तेखा़रा करने का तरीका यह भी नकल किया है। कि--------
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          रात को दो रक्अ़त नमाज़ इस तरह पढ़ें के पहली रकाअत मे सूरए फ़ातिहा [अलहम्दु शरीफ] के बाद सुरह ए काफीरून [कुल या अय्युहल काफ़ेरून] और दूसरी रकाअ़त में सूरए फ़ातिहा के बाद सुरह ए इख्लास (कुल हुवल्लाहु अहद) पढ़ें। और सलाम फेर कर दुआ पढ़ें (वही दुआ जो हमने ऊपर बयान की है) दुआ से पहले और बाद मे सूरह ए फ़ातिहा  और ग्यारह- ग्यारह मरतबा दुरूद शरीफ, जरूर पढ़ें (अव्वल व आखीर)

     बेहतर यह है की यह काम सात मरतबा दोहराए [यानी सात (7) रोज़ लगातार रात को इस तरह अमल करें! (एक ही रात में सात मरतबा  भी कर सकते हैं) इस्तेखा़रा करने के बाद फौरन बा तहारत किब्ला की तरफ रुख करके सो जाए! अगर ख़्वाब में सफ़ेद या हरे रंग की कोई चीज़ नजर आए तो कामयाबी है! यानी उस लड़की से निकाह करना ठीक होगा। और अगर लाल या काली रंग की चीज़ नजर आए तो समझे कामयाबी नहीं! यानी उस लड़की से निकाह करने में बुराई है। [वल्लाहु तआला आ़लम]

               🔵                     🔵

(अरबी मे दुआ भी  अल्फाज की दुरूस्तगी के लिये इसके साथ निचे दि गयी है, उसका भी मुलाहीजा फरमाए!)
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✍🏻    बाकी अगले पोस्ट में...

📮 जारी है...
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✍🏻  मुसन्नीफ -मुहम्मद फारुख खान अशरफी रजवी साहब, नागपुर महाराष्ट्र और हिंदी पोस्ट महमुद आलम कादरी साहब बाराबंकी लखनऊ उ.प्र. की वेब से लि गयी है!
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طالِبِ دُعا عبدالباسط عبدالرحیم

*_इस्तेखारा के लिये अरबी मे दुआ!_*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
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          📕 करीना -ए-जिन्दगी 📕

            ✍🏻 .....भाग-1⃣1⃣

              [जरा इसे भी पढ़िए!]
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    🔵 [मंगनी या निकाह का पैग़ाम] 🔵
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💎  [ आयत :- ].... अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त इरशाद फरमाता है-------

 💎 तर्जुमा..... और तुम पर गुनाह नही इस बात मे जो पर्दा रख कर (पर्दे के साथ) तुम औरतों के निकाह का पयाम दो----

📕 [ कुरआन कन्जुल इमान, पारा 2, सूरह ए बखरा, आयत नंबर 235, ]

....जब किसी लड़की या औरत से शादी का इरादा हो तो उसे शादी का पैग़ाम देने से पहले यह जरूर देख ले के उस लड़की या औरत को किसी और शख्स (इस्लामी भाई) ने पहले से ही तो पैग़ाम नही दिया है या उस की लडकी की मंगनी तो नही हो गयी है।
   
        .... अगर किसी और ने उस लड़की को निकाह का पैग़ाम दिया है या उसके रिश्ते की बात किसी के मुताल्लीक  चल रही हो तो उसे हरगिज़  पैग़ाम न दे के इसे इस्लामी शरीअ़त मे सख्त नापसंद किया गया है चुनांचे हदीस पाक में है

📚  [ हदीस :- ].... हज़रत अबू ह़ुरैरा व हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर [रदि अल्लाहु तआला अन्हुम ] से रिवायत है। कि हुज़ूरे अकरमﷺ ने इरशाद फरमाया-------

 💫 "कोई शख्स (आदमी) अपने इस्लामी भाई के पैग़ाम पर उसी लडकी को निकाह का पैग़ाम न दे!  यहां तक कि पहला खुद इरादा तर्क कर दे, या उसे पैग़ाम भेजने की इज़ाज़त दे" ।

📕 [ बुखारी शरीफ, जिल्द 3, सफा 78, मोता शरीफ, जिल्द 2, सफा 415, ]

      मंगनी असल मे निकाह का वादा है! अगर यह न भी हो तो तब भी कोई हर्ज नही! लिहाजा बेहतर तो यही है के मंगनी की रस्म (Engagement) के नाम पर होनेवाली कुरापात को  बिल्कुल ही खत्म कर दीया जाए, उसकी कोई जरुरत नही है! आजकल उसे एक जरुरी रस्म बना लिया गया है!और उसे शादी की तरह निभाते है, शादी की तरह उसमे खर्च करते है! इस रस्म मे रुपयो की बरबादी के सिवा कुछ नही! लिहाजा इस रिवाज को छोडना ही बेहतर है! मुरवज्जा मंगनी की रस्म मे मुसलमानो मे इंतेहाई मुबालेगा पाया जा रहा है! गालीबन यह रस्म हमने हिंदुस्तान मे गैरमुस्लीमो से अपनाई है! क्यो के इस अंदाज से रस्म की अदायगी सिवाए भारत और पाक के अलावा कही नही पाई जाती है! बल्की अरबी और फारसी जुबान मे इसका (रस्म) का कोई नाम भी नही है!(मसलन मंगनी, सगाई, कढाई और साख वगैरह!)

            (वल्हाहु तआला आलम)

       अगर मंगनी करना जरूरी ही समझते है, तो उसे निहायत सादगी के साथ अदा करे! जिससे के माशरे के गरीब मुसलमान भाई अहसास ए कमतरी और हिन भावना का शिकार  होने से बच जाए!
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✍🏻  बाकी अगले पोस्ट में...

📮  जारी है...
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✍🏻  मुसन्नीफ -मुहम्मद फारुख खान अशरफी रजवी साहब, नागपुर महाराष्ट्र और हिंदी पोस्ट महमुद आलम कादरी साहब बाराबंकी लखनऊ उ.प्र. की वेब से लि गयी है!
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          📕  करीना -ए-जिन्दगी 📕

           ✍🏻 .....भाग-1⃣2⃣

            [जरा इसे भी पढ़िए!]
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♻ [ निकाह से पहले लड़की देखना ] ♻
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      किसी लड़की या औरत को किसी गैर मर्द को दिखाने में कोई हर्ज नही जब वोह उस से शादी का इरादा रखता हो या उसने शादी का पैग़ाम भेजा हो लेकिन, उस मर्द के दूसरे मर्द रिश्तेदारों या दोस्त अ़हबाब को नही दिखाना चाहिए कि वह गैर मरहम है [जिन से पर्दा करना जरूरी है] लिहाज़ा सिर्फ़ लड़के या मर्द और उसके घर की औरतें ही लड़की  देखे

           निकाह से पहले लड़की को देखना मुस्तहब है लेकिन इस बात का जरूर ख्याल रखें कि लड़के को लड़की इस तरह दिखाएँ कि लड़की को भनक भी न लगे कि लड़का उसे देख रहा है [यानी खुल्लम-खुल्ला सामने न लाए] अगर इस एहतियात से दिखाया जाएगा तो उसमे कोई हर्ज नहीं  बल्की बेहतर है कि बाद में  किसी किस्म की ग़लत फ़हमी नही होती

📚  [ हदीस :- ] हज़रत मुहम्मद सलामा [रदिअल्लाहु  तआला अन्हु]  फरमाते  हैं

    "मैं ने एक औरत को निकाह का पैग़ाम दिया मैं उसे देखने के लिए उस के बाग में छुप कर जाया करता था यहां तक कि मैंने उसे देख लिया किसी ने कहा "आप ऐसी हरकत क्यों करते हैं हालांकि आप हुज़ूर  ﷺ के सहाबी हैं?"

   तो मैंने कहा रसूलुल्लाह ﷺ ने इरशाद फरमाया

  "जब अल्लाह ताआ़ला किसी के दिल में किसी औरत से निकाह की ख्वाहिश डाले और वह उसे पैग़ाम दे तो उसकी जाने देखने में कोई हर्ज नहीं"

📕 [ इब्ने माज़ा शरीफ, जिल्द  नं 1, बाबू नं 597, हदीस नं 1931, सफा 523, ]
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📚 [ हदीस :- ]हजरत जाबिर [रदि अल्लाहु तआला अन्हु] से रिवायत है कि हुज़ूर ﷺ ने इरशाद फरमाया...

💎 "जब तुम में से कोई औरत को निकाह का पैग़ाम दे अगर उस औरत को देखना मुम्किन हो तो देख ले"

📕 [ अबू दाऊद शरीफ, बाब नं  96, हदीस नंबर 314, जिल्द 2, सफा नं 122, ]
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📚 हदीस हुज़ूर सैय्यदना इमाम बुख़ारी [रदि अल्लाहु तआला अन्हु] ने अपनी मशहूर किताब "सही बुखारी" जिल्द 3, बाब "किताबुन निकाह" मे निकाह से पहले औरत को देखने के मुत्अ़ल्लिक़ एक ख़ास बाब [Chapter] लिखा है जिसमें यह साबित किया है के निकाह से पहले औरत को देखना जाइज़ है। चुनांचे उस बाब  की एक तवील हदीस मे है के-----

(हदिस अगले पार्ट मे पेश की जाएंगी! इंशा अल्लाह तआला!)
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          📕 करीना -ए-जिन्दगी 📕

                ✍🏻 .....भाग-1⃣3⃣

                [जरा इसे भी पढ़िए!]
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♻ [ निकाह से पहले लड़की देखना ] ♻
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   💎  हुज़ूरे अकरम ﷺ की ख़िदमते अक्दस में एक मर्तबा एक सहाबिया खातुन  हाजीर हुई और आपसे निकाह की दरख़्वास्त की, लेकिन हुज़ूर ﷺ ने अपना सर मुबारक झुका लिया और उन्हें कुछ जवाब न दिया । एक सहाबी ने खड़े होकर अ़र्ज़ किया "या रसूलुल्लाह अगर आपको उस औरत की जरूरत नही है,  तो उसका निकाह मेरे साथ फरमा  दीजिए" । हुजुर ﷺ के उन से पूछने पर मअ़लूम हुआ कि उनके पास मुफलिसी की वजह से कुछ रुपये, पैसे,  कपड़ा वगैरह नहीं है।  यहां तक की यहां महर  अदा करने के लिए एक अंगूठी  तक भी नहीं है! अलबत्ता क़ुरआन की कुछ सूरतें याद है! चुनांचे हुजुर ﷺ ने उनके क़ुरआन करीम जानने के सबब से उस सहाबीया खातुन  का निकाह उस सहाबी से फरमा दिया!

📚 [बुखारी शरीफ जिल्द 3, बाब नं 65, हदिस नंबर    113 ]

       तंबी :-  उलमा ए इक्राम फरमाते है की यह खुसुसीयत उन्ही सहाबी के लिये मख्सुस थी और रसुलुल्लाह ﷺ के बाद ऐसा करने का किसी को हक नही है! क्यो की अल्लाह के रसुल का हुक्म खुद शरीयत है! आज इस तरह से निकाह करना जाइज नही!

📚 [अबु दाऊद शरीफ जिल्द 2, बाब नंबर 108 सफा नंबर 132]
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           इसी तरह एक दूसरी हदीस में है कि रसूले अकरम ﷺ को ख्वाब में हज़रत आएशा सिद्दीका  रदिअल्लाहु तआला अन्हा को निकाह से पहले दिखाया गया।

📚 [बुखारी शरीफ जिल्द 3, बाब नं 65, हदिस नंबर  112 ]

     इन हदीसे मुबारका  से  इमाम बुख़ारी रदि अल्लाहु तआला अन्हु ने यह साबित किया  है की औरत को निकाह से पहले  देखना जाइज़ है
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📚 [ हदीस :- ].... सैय्यदना इमाम मुहम्मद ग़ज़ाली [रदि अल्लाहु तआला अन्हु] फरमाते है
   
             "निकाह से पहले औरत को देख लेना इमाम शाफ़अ़ई [रदिअल्लाहु तआला अन्हु] के नज़दीक सुन्नत है।

 📚  [ हदीस :-   यही इमाम ग़ज़ाली आगे नक़्ल फरमाते है। के
    औरत का ज़माल  मुहब्बत व उल्फ़त का ज़रीया है इसलिए निकाह करने से पहले लड़की को देख लेना सुन्नत है। बुजुर्गों का कौ़ल है कि औरत को बे देखे जो निकाह होता है उसका अंजाम परेशानी और ग़म है।

📕 [ कीमीया-ए-सआ़दत, सफा नं 260, ]
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📚 [ हदीस :- ]| हुज़ूर सैय्यदना गौ़से आ़ज़म शेख अब्दुल क़ादिर ज़ीलानी [रदिअल्लाहु तआला अन्हु] इरशाद फरमाते है।--

    मुनासिब है के निकाह से पहले औरत का चेहरा और ज़ाहिरी बदन  [यानी हाथ मुँह वगैरह] देख ले ताकि बाद मे नफरत या तलाक़ की नौबत न आए क्यों कि तलाक़ और नफरत अल्लाह तआला को सख्त  ना पसंद हैं।

📕 [ गुनयातुत्तालेबीन सफा नं 112, ]
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            📕  करीना -ए-जिन्दगी 📕

             ✍🏻 .....भाग-1⃣4⃣

             [जरा इसे भी पढ़िए!]
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       💫  [ लडकी की राज़ामन्दी ] 💫
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     आपने अक्सर देखा और सुना होगा कुछ ग़ैर मुस्लिम मुसलमानों को ताना देते है कि  इस्लाम ने औरतों के साथ नाइंसाफ़ी की है। हालांकि उन  कम अक्लो को यह नही सुझता  कि उनके धर्म ने औरतों के कितने ही हुक़ूक का किस बेदर्दी से गला घोंटा गया है।
     
      यह कम फहम औरतों को सड़कों, बाज़ारों और अपनी झूठी इबादत गांहों मे आध नंगी हालत में खुले आ़म में घूमने फिरने  को ही उनकी आज़ादी और जाइज़ हक़ समझते हैं !

        बेशक मज़हबे इस्लाम ऐसी बेहूदा़ हरकतो  की हरगिज़ इजाज़त नहीं देता। वह औरतों को बाजारों और सड़कों पर खुले आ़म अपने हुस्न का मुज़ाहिरा पेश करने से सख्ती से मना करता है। लेकिन याद रहे वह औरतों को उनके ज़ायज़ हुक़ूक़ देने में कोई कमी  भी नही करता और न ही औरतों के साथ बुरा सुलूक करने उनके साथ ज़बर्दस्ती करने, या किसी किस्म की ना  इन्साफ़ी करने की इज़ाज़त देता  है। वह हर मुआमले में औरतों से बराबरी और इन्सानी हुस्ने सुलूक करने का मर्दों को हुक़्म देता है।
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     चुनान्चे शरीअ़ते इस्लामी में जहां कई मामलों में औरत की  मर्जी ज़रूरी समझी जाती है। वही  शादी के लिये उसकी रज़ामंदी ज़रूरी  है

📚 [ हदीस :- ].... हज़रत अबूह़ुरैरा व हज़रत अब्दुल्लाह बिन  अब्बास [रदिअल्लाहु  तआला अन्हु] से रिवायत है। के हुज़ूरे अकरम ﷺ ने इरशाद फरमाया---
 
 💎  "कुंवारी का निकाह न किया जाए जब तक उसकी रज़ामंदी न हासिल कर ली जाए! और उसका चुप रहना उसकी रज़ामंदी है! और न ही निकाह किया जाए बेवा का जब तक उससे इज़ाज़त न  ली जाए।

📕 [ तिर्मिज़ी शरीफ, जिल्द 1, सफा 566, मुस्नदे इमामे आज़म सफा नं 214, ]
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           📕 करीना -ए-जिन्दगी 📕

             ✍🏻 ....भाग-1⃣5⃣

               [जरा इसे भी पढ़िए!]
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       💫 [ लडकी की राज़ामन्दी ] 💫
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📚 [ हदीस :- ] हज़रत अब्दुल्ला बिन अब्बास [रदिअल्लाहु तआला अन्हु] रिवायत रिवायत करते है। के......

     "एक औरत के शौहर का इंतेकाल हो  गया। उसके देवर ने उसे निकाह का पैग़ाम भेजा मगर [औरत का] बाप देवर  से निकाह करने पर राज़ी न हुआ, उसने किसी दूसरे मर्द से उस औरत का निकाह कर दिय! वह औरत  नबी ए करीम  ﷺ की ख़िदमत में हाजिर हुई और आपसे पूरा किस्सान बयान किया । हुज़ूर  ﷺ ने  उसके बाप को बुलावाया । उससे आपने फ़रमाया "यह औरत क्या कहती है" उस ने जवाब दिया.... "सच कहती है, मगर  मैंने इसका निकाह ऐसे मर्द से किया है जो इसके देवर से बेहतर है"। इस पर हुज़ूर ﷺ  ने उस मर्द और औरत में जुदाई करवा दी और औरत का निकाह उसके देवर से कर दिया जिससे वह निकाह करना चाहती थी।

📕 [ मुस्नदे इमामे आ़ज़म बाब नं 124, सफा नं 215]
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✍🏻 [ शरह :- ].... हज़रत मुल्ला अ़ली क़ारी [रहमतुल् अलैह] इस हदीस के मुत्तअल्लीक तहरीर फरमाते  हैं। कि.....

  "इब्ने क़त्तान [रदि अल्लाहु तआला अन्हु] ने कहा है कि हजरत इब्ने अब्बास रदी अल्लाहु तआला अन्हु की यह हदीस सही है!  और यह औरत हज़रत खंसा बिन्त ख़ुज़ाम [रदिअल्लाहु  तआला अन्हुमा] थी, जिस की हदीस इमाम मालिक व इमाम बुखारी ने भी नक्ल की है की  उन का निकाह हुजुर ए अक्दस ﷺ ने रद्द फ़रमा दिया था"!
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📚 [ हदीस :- ]....बजरत इमाम बुखारी रहेमतुल्लाह अलैही ने बुखारी शरीफ मे यही हदीस इन अ़ल्फाजो़ के साथ नक़्ल की है। हज़रत ख़नसा बिन्त ख़ेज़ाम [रदिअल्लाहो तआला अन्हुमा] इरशाद फरमाती है। क.....

   "उनके वालिद ने उन का निकाह कर दिया जबकि वह उस निकाह को ना पसंद करती थी। वह रसूलुल्लाह ﷺ की बारगा़ह में हाजिर हों गयी आप ने फरमाया कि "वह निकाह नहीं हुआ"

📕 [ मोता शरीफ, जिल्द 2, सफा नं 424, बुखारी शरीफ, जिल्द 3, सफा नं 76, ]
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💎💎💎💎 इन तमाम अहादीसे मुबारका से मालुम हुआ के शादी से पहले कुंवारी लड़की और बेवा (औरत) से  इज़ाज़त लेना ज़रूरी है,  और हमारे आक़ा ﷺ की बहुत ही प्यारी सुन्नत भी है। चुनांचे इस हदीसे पाक में है। कि.....

📚 [ हदीस :-] हज़रत अबू ह़ुरैरा [रदि अल्लाहु तआला अन्हु] से रिवायत है!

        नबी ए करीम ﷺ अपनी किसी साहबज़ादी को किसी के निकाह में देना चाहते तो उनके पास तशरीफ लाते और फ़रमाते  "फलाम शख्स [ यहां उनका नाम लेते] तुम्हारा जिक्र करता है" और फिर [ साहबजादी की रजा़मन्दी माअ़लूम हो जाने पर] निकाह पढ़ा दिया करत!

📕 [मुस्नदे इमाम ए आज़म,  बाब नं 123, सफा नं 214] 

      आज देखा यह जा रहा है मां, बाप लड़की की मर्ज़ी को कोई अहमियत नहीं देते अपनी मर्ज़ी के मुताबिक जहॉ चाहते है  शादी कर  देते है! अब शादी के बाद अगर लड़की को लड़का पसंद आ गया तो ठीक, और अगर पसंद न आया तो झगड़ो और नाइत्तेफ़ाक़ीयों का एक सैलाब उमड़ पड़ता है और कभी कभी नौबत तलाक़ तक आ पहुंचती है।

   अपनी लख्ते जिगर के लिए अच्छे लड़के की तलाश करना और फिर उसे ब्याह देना यक़ीनन यह मां-बाप की ही ज़िम्मेदारी है!  लेकिन जहां इतनी उठा पटक करते है वही अगर लड़की की मर्जी (रज़ामन्दी) मालूम कर ली जाए तो इसमें भला क्या हर्ज है। लड़की से उसकी मर्ज़ी  मालूम  भी करनी चाहिए। क्यों कि उसे ही सारी ज़िन्दगी गुजारना है।
     और हाँ अगर लडकी  खुल कर कहने मे झिझक या शर्म महसूस करती हो तो उसे भी दबे अलफ़ाज़ो में या किसी रिश्तेदार औरत के जरीये अपनी मर्जी का इज़हार करे, यह भी सुन्नत है!
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📮  जारी है...
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✭ﺑِﺴْــــــــــــــــﻢِﷲِﺍﻟﺮَّﺣْﻤَﻦِﺍلرَّﺣِﻴﻢ✭

★الصــلوة والسلام عليك يارسول الله ﷺ★
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      📕 करीना -ए-जिन्दगी 📕

                ✍🏻 ....भाग-1⃣6⃣

              [जरा इसे भी पढ़िए!]
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        💫 [ लडकी की राज़ामन्दी ] 💫
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📚 [ हदीस :- ]....हज़रत इब्ने अब्बास [रदिअल्लाहु तआला अन्हु] से रिवायत है। के.....
       
        हुजुर ﷺ  ने जब अपनी साहबज़ादी हज़रत फातिमा [ रदि अल्लाहु तआ़ला अन्हा ] का निकाह हज़रत अली [रदि अल्लाहु तआला अन्हु] से करने का इरादा फरमाया तो आप हज़रत फातिमा [ रदि अल्लाहु तआ़ला अन्हा ]के पास के पास तशरीफ लाए और इरशाद फरमाया,  "अली तुम्हारा जिक़्र करते हैं"। [यानी निकाह का पैग़ाम भेजा है]।

📕 [ मुस्नदे इमामे आ़ज़म, बाब नं 122, सफा नं 213]
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               यह इज़ाज़त हासिल करने का निहायत ही बेहतर तरीक़ा है जो पैग़ाम के वक़्त ज़रूरी है। और वैसे भी साफ खुले अल्फाजों में पूछना हिजाब व हया के ख़िलाफ़ मअ़लूम होता है। ऐसे बहुत से अल्फाज़ है जो इज़ाज़त लेते वक़्त दबे लफ़्ज़ो में कह सकते है । जैसे फलां लड़का तुम्हारा ज़िक्र करता है, फलां तुम पर बहुत मेहरबान है, फलां तुम्हारे लिए बेहतर है, फलां को तुम्हारी ज़रूरत है, फलां का पैग़ाम तुम्हारे लिए है, वगैरह वगैरा, (जहाँ जहाँ "फलां" लिखा है वहां लड़के या का नाम ले!

       इसका साफ मक्सद यह है की लडकी का जिससे निकाह हो रहा है उसको वह पहले से जानती भी हो और उसे देखा भी हो! वर्ना गैर मालुम शख्स के बारे मे इजजात लेना बेकार है!

💫 मसअला  लड़की या औरत से इज़ाज़त लेते वक्त़ जरूरी है की जिसके साथ निकाह करने का इरादा हो उसका नाम इस तरह ले की लडकी या औरत जान सके। अगर यूं कहा एक मर्द या लडके शादीकर दूंगा। या फलां क़ौम के एक शख्स से निकाह कर दूंगा। यह जाइज़ नही और यह इज़ाज़त सही भी नही

📕 [ कानूने शरीअ़त, जिल्द 2, सफा नं 54, ]
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📮 जारी है...
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        ✍🏻 *_....भाग-1⃣7⃣_*

      *_[जरा इसे भी पढ़िए!]_*
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    💫 *_[ लडकी की राज़ामन्दी ]_* 💫
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📚  *[ हदीस :- ]* _इमाम बुख़ारी [रदिअल्लाहु तआला अन्हु] नक़्ल फरमाते है। के हज़रत आइशा [रदिअल्लाहु तआला अन्हा]ने अ़र्ज़ किया की "या रसूलुल्लाह"! ﷺ कुंवारी लड़की तो निकाह की इज़ाज़त देने में शर्माती है ? इरशाद फरमाया "उसका खामोश हो जाना ही इज़ाज़त है"।_

📕 *[ बुखारी शरीफ, बाब नं 71, हदीस नं 124, जिल्द 3 सफा 76, ]*

✍🏻 *[मसअ़ला :-].....* _अगर औरत कुंवारी है तो साफ़-साफ़ रजामंदी के अल्फ़ाज़ कहे या कोई ऐसी हरकत करे जिससे राज़ी होना साफ़ मअ़लूम हो जाए। मसलन मुस्कुरा दे, या हंस दे, या फिर इशारे से जा़हिर करेे!_

📕 *[ कानूने शरीअ़त, जिल्द नं 2, सफा नं 54, ]*

👉🏻 _और अगर इंकार हो तो इस तरह से साफ़-साफ़ कहे "मुझे उस की ज़रूरत नहीं या फिर कहे वह मेरे लिए बेहतर नहीं" वगै़रह वगै़रह जिस तरह भी मुनासिब तौर से ज़ाहिर  कर सकती हो उस तरह से जा़हिर कर दे। फिर मां बाप पर भी जरुरी है ज़्यादा दबाव ना डालें या ज़बरदस्ती ना करें बेजा दबाव डालना, या  जबरदस्ती करना जाइज़ नही_
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📚 *[ हदीस :- ]* _हज़रत अबू ह़ुरैरा [रदि अल्लाहु तआला अन्हु] से रिवायत है। की रसूलुल्लाह ﷺ ने इरशाद फरमाया....._

 💎💎 _"बालीग कुंवारी लड़की से उसके निकाह की इज़ाज़त ली जाए! अगर वह खा़मोश हो जाए तो यह उसकी तरफ से इज़ाज़त है। और अगर इंकार करे तो उस पर कोई ज़बरदस्ती नही"_

📕 *[ तिर्मिज़ी शरीफ, हदीस नं 1101, जिल्द 1, सफा नं 567,]*
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✍🏻 *[ मसअ़ला :-]* _बालेगा व आक़ेला औरत का निकाह बगैर उसकी इज़ाज़त के कोई नही कर सकता न उसका बाप, न इस्लामी हुकूमत का बादशाह, औरत कुंवारी हो या बेवाह, । इसी तरह बालीग व आकील [पागल वगैरह न हो] मर्द का निकाह बगै़र उसकी मर्ज़ी के कोई नही कर सकता ।_

📕 *[ कानूने शरीअ़त, जिल्द नं 2 सफा 54, ]*

✍🏻 *[ मसअ़ला :-]* _कुंवारी लड़की का निकाह या लड़के का निकाह उनकी इज़ाज़त के बगै़र कर दिया गया । और उन्हें निकाह की ख़बर दी गई तो अगर औरत चुप रही, या हँसी, या बगै़र आवाज के रोई तो निकाह मन्ज़ूर है समझा जाएगा। इसी तरह मर्द ने इंकार न किया तो निकाह मन्ज़ूर  समझा जाएगा। लेकिन मर्द या औरत मे से किसी एक ने इंकार कर दिया या मर्द ने इन्कार कर दिया तो निकाह टूट गया।_

📕 *[ फ़तावा-ए-रज़वीया, जिल्द 5, सफा 104, कानूने शरीअ़त, जिल्द 2, सफा 54, ]*

   👉🏻 _यह तमाम शरई  मसाइल है जिनका जानना और उन पर अ़मल करना ज़रूरी है। जिसमें माँ, बाप, की भी जिम्मेदारी है की अपनी औलाद की खुशी का ख्याल रखे, और औलाद का भी फ़र्ज़ है कि वह माँ, बाप, और घर के दीगर बुज़ुर्गो का कहा माने और वह जहां शादी करना चाहे उनकी रज़ामंदी में ही अपनी रज़ा समझे कि माँ, बाप, कभी भी अपनी औलाद का बुरा नही चाहते ।_
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📚 *[ हदीस :-]* _हज़रत अबू ह़ुरैरा [रदि अल्लाहु तआला अन्हु] से रिवायत है। कि *रसूलुल्लाह ﷺ* ने इरशाद फरमाया....._

 💎 _"कोई औरत  दूसरी का निकाह न करे, और न कोई औरत अपना निकाह खुद करे क्यों कि जानीया (ज़िना करने वाली) वही है जो अपना निकाह खुद करती है।_

📕 *[ इब्ने माज़ा, जिल्द नं 1, बाब नं 603,हदीस नं 1950, सफा नं 528, मिश्क़ात शरीफ, जिल्द नं 2, हदीस नं 3002, सफा नं 78, ]*

✍🏻 *[ मसअ़ला :-]....* _बालिग़ लड़की वली [माँ, बाप वगैरह] की इज़ाज़त के बगै़र खुद अपना निकाह छुप कर या एलानिया किया तो उसके जाइज़ होने के लिए यह शर्त है। शौहर उस का क़ुफ्व हो, यानी मज़हब या खानदान, या पेशे, या माल, या चाल चलन में औरत से ऐसा कम न हो कि उसके साथ उसका निकाह होना लड़की के माँ, बाप, व खानदान वालो और दिगर  रिश्तेदारों के लिए बे इज़्ज़ती, या शर्मिन्दगी, व बदनामी का सबब हो, अगर ऐसा है तो वह निकाह न होगा।_

📕 *_[ फ़तावा-ए-रज़वीया, जिल्द नं 5, सफा नं 142, ]_*

💫 *_मसअला_* शादी की तारीख तय करते वक्त दुल्हन के अय्याम हैज (महावारी पिरीयड) से बचने के लिये उसकी रजा ले ली जाए! यह उन इलाको मे निहायत जरुरी है जहॉ निकाह के बाद उसी दिन या एक दिन बाद रुख्सती (बिदाई) होती है! 
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✍🏻 *_बाकी अगले पोस्ट में..._*

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_✍🏻  मुसन्नीफ -मुहम्मद फारुख खान अशरफी रजवी साहब, नागपुर महाराष्ट्र!_
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*_طالِبِ دُعا عبدالباسط عبدالرحیم_*

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      📕 *_करीना -ए-जिन्दगी_*📕

  ✍🏻 *_....भाग-1⃣8⃣_*

      *_[जरा इसे भी पढ़िए!]_*
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💫 *_[ महर का बयान ]_* 💫
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      _आपका और हमारा यह तर्जुबा है कि मुसलमानों में  आज बड़ी तादाद में  ऐसे लोग है जो शादी तो कर लेते है, महर भी बाँध लेते हैं लेकिन उन्हें इस बात की मालुमात नही होती के महर कितने क़िस्म के होते है! और उनका निकाह किस क़िस्म के महर पर हुआ है!  लिहाजा मुसलमानों को यह जान लेना  जरूरी है।_

  💫 *_महर तीन क़िस्म का होता हैं।_*💫
 
 1⃣ *_महर ए मुअज्जल (नगद)_* _महर ए मुअज्जल यह है कि खल्वत से पहले महर देना करार पाया हो।  [चाहे दिया कभी भी जाए!]_

2⃣ *_महर ए मुवज्जल (उधार)_* _महर ए  मुवज्जल यह है कि महर की रक़म देने के  लिए कोई वक्त़ मुक़र्रर कर दिया जाए।_

3⃣  *_महर ए मुतलक़_* _महर ए  मुतलक़ यह है कि जिस में कुछ तय न किया जाए।_

📕 *[फ़तावा-ए-मुस्तफ़ाविया, जिल्द नं 3, सफा नं 66, कानूने शरीअ़त, जिल्द नं 2, सफा नं 60,]*
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      👉🏻 _इन तमाम महर की किस्मों में मेहर "मुअ़ज्जल (नगद)" रखना ज़्यादा अ़फज़ल है। [यानी रुख़्सती से पहले ही महर अदा कर दी जाए]_

📕 *[ कानूने शरीअ़त, जिल्द नं 2, सफा नं 60,]*
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✍🏻 *[ मसअ़ला :-]....* _महरे मुअ़ज्जल वसूल करने के लिए अगर औरत चाहे तो अपने आपको शौहर से रोक सकती है! यानी यह इख्तियार है की वती (मुबाशरत) से रोके रखे! और मर्द को हलाल  नहीं की औरत को मजबूर करे या उसके साथ किसी तरह की जबरदस्ती करे । यह हक़ औरत को उस वक्त़ तक हासिल है जब तक महर वसूल न कर ले! इस दर्मियान अगर औरत चाहे तो अपनी मर्ज़ी से हमबिस्तरी (सोहबत) कर सकती है! इस दौरान भी मर्द अपनी बीवी का नान नफ़्क़ा [खाना, पीना, कपड़ा, खर्चा वगैरह] बंद नही कर सकता। जब मर्द औरत को उसका महर दे दे तो औरत का अपने शौहर को सोहबत करने से रोकना जाइज़ नही।_

📕 *[ फ़तावा-ए-मुस्ताफ़ाविया, जिल्द नं 3, सफा नं 66, कानूने शरीअ़त, जिल्द नं 2, सफा नं 60, ]*
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✍🏻 *_[ मसअ़ला :-]_* _इसी तरह अगर महरे मुवज्जल (उधार) था! [यानी महर अदा करने के लिए एक ख़ास मुद्दत मुक़र्रर की गयी थी] और वह मुद्दत खत्म हो गई तो औरत शौहर को हमबिस्तरी (सोहबत) करने से रोक सकती है।_

✍🏻 *_[ मसअ़ला :-]_* _औरत को महर माफ करने के लिए मजबूर करना जाइज़ नहीं ।_

📕 *_[ कानूने शरीअ़त, जिल्द नं 2, सफा नं 60]_*
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 🔥🔥🔥   *_इस जमाने में ज़्यादा तर लोग यही समझते कि महर देना कोई ज़रूरी नहीं बल्कि सिर्फ़ एक रस्म है, और कुछ लोगों का ख़्याल है कि महर तलाक के बाद ही दिया जाता है! और कुछ लोग समझते हैं कि महर इसलिए रखते है कि औरत को महर देने के ख़ौफ से तलाक़ नही दे  सकेगा।_*

         *_यही वजह है हमारे मुल्क में ज़्यादा तर लोग महर नही देते यहां तक के  इन्तिक़ाल के बाद उनके जनाज़े पर उनकी बिवी अाकर महर माफ करती है। वैसे औरत के माफ कर देने से महर माफ तो हो जाता है, लेकिन महर दिए बगै़र दुनिया से चले जाना मुनासीब नही,  खुदा न ख्वासता पहले औरत का इंतिक़ाल हो गया और अगर  वह माफ न कर सकी, या महर माफ करने की उसे मोहलत न मिली तो हक्कुल-अब्द मे गिरफ्तार और दिन व दुनियॉ मे रुसवा शर्मसार होंगा! और रोजे क़यामत में सख़्त पकड़ और सख़्त अ़ज़ाब होंगा! लिहाजा इस खतरे से बचने के लिए महर अदा कर देना चाहिए। इस मे सवाब भी है और यह हमारे आक़ा ﷺ की सुन्नत भी है_*
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_✍🏻  मुसन्नीफ -मुहम्मद फारुख खान अशरफी रजवी साहब, नागपुर महाराष्ट्र!_
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      📕 *_करीना -ए-जिन्दगी_*📕

  ✍🏻 *_....भाग-1⃣9⃣_*

          *_[जरा इसे भी पढ़िए!]_*
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         💫 *_महर का बयान_* 💫
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           *_हमारा रब जल्ला जलालाहु इरशाद फरमाता है।....._*

💎 *_तर्जुमा_*_"और औरतों को उन के महर खुशी से दो "।_

📕 *_[कुरान :- तर्जुमा  कन्जुल इमान, सूरए निसा,  आयत नं 4]_*

💎 *_तर्जुमा_*_" तो जीन औरतो को  तुम निकाह मे लाना चाहो उनके बंधे हुए महर उन्हे दो "।_

📕 *_[कुरान :- तर्जुमा  कन्जुल इमान, सूरए निसा,  आयत नं 24]_*
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👉 *_मसअला_* _औरत अगर होश व हवास मे राजी खुशी से महर माफ कर दे तो हो जाएंगा! हॉ अगर धमकी देकर माफ कराया और औरत ने मारे खौफ के माफ कर दिया तो इस सुरत मे माफ नही होंगा! और अगर मरजुल-मौत मे माफ कराया, जैसा के अवाम मे राईज (रिवाज) है की जब औरत मरने लगती है, तो उससे महर माफ कराते है, तो इस सुरत मे वारीसो की इजाजत के बगैर माफ नही होंगा!_

📚 *_[फतावा  आलमगिरी जिल्द 1 सफा नं 293, दुर्रे मुख्तार मआ शामी जिल्द 2 सफा 338]_*
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🔥🔥 *_जेहालत_*🔥🔥
       👉🏻 _अक्सर मुसलमान अपनी हैसियत से ज़्यादा महर रखते है और यह ख़्याल करते हैं। कि "ज़्यादा महर रख भी दिया तो क्या फ़र्क़ पड़ता है देना तो है ही नही" यह सख़्त जेहालत है और दीन से मजाक़ है! ऐसे लोगों इस हदिस को पढ कर इबरत हासील करे!......_

📚 *_हदीस_* _अबु याला व तबरीनी व बैहकी मे हजरत उक्बा बिन आमीर रदि अल्लाहु तआला से मरवी है के हुजुर अक्दस ﷺ ने इरशाद फरमाया....._

💎 _"जो शख्स निकाह करे और नियत यह हो की औरत को महर मे से कुछ ना देगा तो जिस रोज मरेंगा जानी (जिना करने वाला) मरेंगा!_

📚 *_[अबु याला, तबरानी व बैहकी बहवाला बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा नंबर 7 सफा नं 32 ]_*

        👉🏻 *_लिहाजा महर इतना ही रखे जितना देने की हैसियत  है और महर जितना जल्दी हो सके अदा कर दे। के यही अ़फज़ल तरीक़ा है।_*

📚 *[हदीस :-]....* _*रसूले मक़बूल ﷺ* ने इरशाद फरमाया....._

  💎 _"औरतों में वह बहुत बेहतर है जिसका हुस्न व ज़माल [खूबसूरती] ज़्यादा हो और महर कम हो।_
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📚  _"इमाम ग़ज़ाली [रदिअल्लाहो तआला अन्हा] फरमाते है....._

         *_"बहुत ज़्यादा महर बांधना मक़रूह है लेकिन हैसियत से कम भी न हो।_*
📕 *[कीम्या-ए-सआ़दत, सफा नं 260,]*
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*_कुछ लोग कम से कम महर बांधते है, और दलील यह देते है के रुपयो पैसो से क्या होता है! दिल मिलना चाहीये, यह भी गलत है! महर की अहमियत को घटाने के लिए अगर कोई कम महर बांधे तो यह भी ठिक नही है! औरतो को अपना महर ज्यादा लेने का हक है! और इस हक से उनको कोई मर्द रोक नही सकता!_*
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✍🏻 *_बाकी अगले पोस्ट में..._*

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      📕 *_करीना -ए-जिन्दगी_*📕

  ✍🏻 *_....भाग-2⃣0⃣_*

          *_[जरा इसे भी पढ़िए!]_*
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         💫 *_शादी की रस्मे_* 💫
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✍🏻 _शादी में तरह तरह की रस्में बरती जाती है! हर मुल्क में नई रस्म, हर  क़ौम और  हर  खानदान  का अपना अलग रिवाज!  यह कोई नही समझता है के शरअन यह रस्में कैसी है! मगर यह ज़रूर है के रस्मों की पाबन्दी उसी हद तक की जाए कि किसी हराम काम में मुब्तला न हो । कुछ लोग रस्मों की इस कदर पाबन्दी करते है कि नाजाइज़ व  हराम काम को भले ही करना पड़े मगर रस्म न छुटने पाए।_
       👉🏻 _हमारे मुल्क  में आम तौर पर बहुत सी रस्मों की पाबंदी की जाती है। जैसे ........रतजगा, हल्दी  खेलने की रस्म, नहारी, शादी के रोज़ या बाद मे जुवा खेलना, शराब पीना, ढोल बाजे, नाचना गाना, गाने बाजो और पटाखो  के साथ बारात निकालना, विडीयो रिकार्डींग वगैरह, वगैरह  जबकि इन रस्मों में बेपर्दगी, छिछोरापन, अय्याशी और हराम कामों का वज़ूद होता है!  जवान लडके लड़कियाँ हल्दी खेलते हैं नाचते गाते है बेहुदा हँसी मजाक़ और तरह तरह की तहजीब से गिरी हुई हरकत करते हैं। अगर इन तमाम रस्मों की पाबन्दी के लिए रुपए न हो तो सूद पर रुपए लेने से भी नही चूकते ।_
            👉🏻 _यहां मुमकिन नहीं की हर रस्म पर अलग अलग उनवान कायम करके तफ्सीली बहस  की जाए! लिहाजा हम यहॉ चंद हदीसे पेश करते हैं। इन्साफ़ पसन्द के लिए इसी क़द्र क़ाफी और हटधर्म और ज़ाहिल के लिए पूरा क़ुरआन व अहादीस के ख़ज़ाने भी नाक़ाफी!_
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   _अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त इरशाद फरमाता है....._

💎 💎 *_"और फ़ुजूल न उड़ा बेशक (फुजुल) उड़ाने वाले शैतानो के भाई है, और शैतान अपने रब का बड़ा नाशुक्रा है।_*

📕 *_[कुरआन तर्जुमा  कन्जुल इमान, सूरह ए बनी इस्राईल़, आयत नं 26/27,]_*
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📚  *_[हदीस :-]_* _हुजुर ﷺ ने इरशाद फरमाया....._

💎 _"जिसने जुवा खेला गोया उस ने ख़िन्ज़ीर [सुवर] के गोश्त व खून मे हाथ धोया" ।_

📕 *_[ मुस्लिम शरीफ, अबूूदाऊद शरीफ, मुका़शेफातुल क़ुलूब, बाब नं 99, सफा नं 635,]_*
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📚 *_[हदीस :-]_* _नबी-ए-करीम ﷺ ने इरशाद फरमाया....._

      💎 _"सब से पहले गाना इब्लीस [शैतान, मरदूद] ने गाया"!_

📚 *_[हदीस :-]_* _हज़रत इमाम मुजाहिद [रदिअल्लाहु तआला अन्हु] फरमाते है..._

        👉🏻 _"गाने बाजे शैतान की आवाजें है जिसने इन्हें सुना गोया उस ने शैतान की आवाज सुनी"।_

📕 *[हादीयुन्नास फ़ी रूसूमिल एेरास, सफा नं 18,]*

📚 *_[हदीस :-]_* _हज़रत  शफीक बिन सलमा  [रदि अल्लाहु तआला अन्हु] रिवायत करते है..._

💫 _हजरत अब्दुल्लाह बिन मसऊद रदि अल्लाहु तआला अन्हु ने इरशाद फरमाया...._

  💫 *_"गित, गाने, ढोल बाजे दिल मे यु निफाक  उगाते है! जैसे पानी सब्जा उगाता है!"_*
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✍🏻 *_[मसअ़ला :-]_* _उबटन मलना जाइज़ है। और दुल्हा की उम्र नव दस साल की हो तो अजनबी औरतों का उसके बदन में उबटन मलना भी गुनाह नही!  हाँ बालिग़ के बदन पर ना महरम औरतों का मलना ना जाइज़ है और बदन को हाथ तो माँ भी नही लगा सकती! यह हराम और सख़्त हराम है। और औरत व मर्द के दर्मियान शरीअ़त ने कोई मुँह बोला रिश्ता न रखा यह शैतानी व हिन्दुवानी रस्म है।_

📕 *[फ़तावा-ए-रज़वीया जिल्द नं 9, सफा नं 170,]*   
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